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नहीं हो सकती। हिंदी में जो सामासिक क्रियाविशेषण आते हैं उनके अव्यय होने में कोई संदेह नहीं है, क्योंकि उनके पश्चात् विभक्ति का योग नहीं होता और उनका प्रयोग भी बहुधा क्रियाविशेषण के समान होता है, जैसे, यथाशक्ति, यथासाध्य, निःसंशय, निधड़क, दरहकीकत, धरोंधर, हाथोहाथ, इत्यादि।

क्रियाविशेषणों का तीसरा वर्गीकरण अर्थ के अनुसार किया गया है। क्रिया के संबध से काल और स्थान की सूचना बड़े ही महत्व की होती है। किसी भी घटना का वर्णन काल और स्थान के ज्ञान के बिना अधूरा ही रहता है। फिर जिस प्रकार विशेषणों के दो भेद—गुणवाचक और संख्यावाचक—मानने की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार क्रिया के विशेषणों के भी ये दो भेद मानना आवश्यक है, क्योंकि व्यवहार में गुण और संख्या का अंतर सदैव माना जाता है। इस तरह अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषणों के चार भेद—कालवाचक, स्थानवाचक, परिमाणवाचक और रीतिवाचक माने गये हैं। परिमाणवाचक क्रियाविशेषण बहुधा विशेषण और दूसरे क्रियाविशेषणों की विशेषता बतलाते हैं जिससे क्रियाविशेषण के लक्षण में विशेषण और क्रियाविशेषण की विशेषता का उल्लेख करना आवश्यक समझा जाता है। कालवाचक, स्थानवाचक और परिमाणवाचक शब्दों की संख्या रीतिवाचक क्रियाविशेषणों की अपेक्षा बहुत थोड़ी है, इसलिए उनको छोड़ शेष शब्द बिना अधिक सोच-विचार के पिछले वर्ग में रख दिये जा सकते हैं। इन चारों वर्गों के उपभेद भी अर्थ की सूक्ष्मता बताने के लिये यथास्थान बताये गये हैं।

अंत में "हाँ", "नहीं" और 'क्या" के संबंध में कुछ लिखना आवश्यक जान पड़ता है। इनका प्रयोग प्रश्न के संबंध में किया जाता है। प्रश्न करने के लिए "क्या", स्वीकार के लिए "हाँ" और निषेध के लिए "नहीं" आता है; जैसे, "क्या तुम बाहर चलोगे?" "हाँ" या "नहीं।" इन शब्दों को कोई कोई क्रियाविशेषण और कोई कोई विस्मयादिबोधक अव्यय मानते हैं, परंतु इनमें इन दोनों शब्दभेदों के लक्षण पूरे पूरे घटित नहीं होते। "नहीं" का प्रयोग विधेय के साथ क्रियाविशेषण के समान होता है, और "हाँ" शब्द "सच" "ठीक" और "अवश्य," के पर्याय में आता है, इसलिए इन दोनों (हाँ और नहीं) को हमने क्रियाविशेषणों के वर्ग में रक्खा है। "क्या" संबोधन के अर्थ में आता है, इसलिए इसकी गणना विस्मयादिबोधकों में की गई है।]


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