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दूसरा अध्याय।

संबंध-सूचक।

२२९—जो अव्यय संज्ञा (अथवा संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाले शब्द) के बहुधा आगे आकर उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ मिलाता है उसे संबंधसूचक कहते हैं। जैसे, "धन के बिना किसीका काम नही चलता।" "नौकर गाँव तक गया," "रात भर जागना अच्छा नहीं होता।" इन वाक्यों में 'बिना', 'तक' और 'भर' सबंधसूचक हैं। "बिना" शब्द "धन" संज्ञा का संबंध "चलता" क्रिया से मिलाता है। "तक" "गाँव" का संबंध "गया" से मिलाता है; और "भर" "रात" का संबंध "जागना" क्रियार्थक संज्ञा के साथ जोड़ता है।

[सूचना—विभक्तियों और थोढ़े से अव्ययों को छोड़ हिंदी में मूल संबंध सूचक कोई नहीं है जिससे कोई कोई वैयाकरण (हिंदी में) यह शब्द-भेदही नहीं मानते। "संबंधसूचक" शब्द-भेद के विषय में इस अध्याय के अंत में विचार किया जायगा। यहाँ केवल इतना लिखा जाता है कि जिन अव्ययों को सुभीते के लिए संबंधसूचक मानते हैं उनमें से अधिकाश संज्ञाएँ हैं जो अपनी विभक्तियों का लोप हो जाने से अव्यय के समान प्रयोग में पाती है।]

२३०—कोई कोई कालवाचक और स्थानवाचक अव्यय क्रिया-विशेषण भी होते हैं और संबंधसूचक भी। जब वे स्वतंत्र रूप से क्रिया की विशेषता बताते हैं तब उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं, परंतु जब उनका प्रयोग संज्ञा के साथ होता है तब वे संबंधसूचक कहाते हैं, जैसे—

नौकर यहाँ रहता है। (क्रियाविशेषण)।

नौकर मालिक के यहाँ रहता है। (संबंधसूचक)

वह काम पहले करना चाहिए। (क्रि॰ वि॰)।

यह काम जाने से पहले करना चाहिए। (सं॰ सू॰)।