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"अब मैं भी तुम्हारी सखी का वृत्तात पूछता हूँ।" (शकु०)। दो वाक्यों वा शब्दों के बीच में "और" रहने पर इससे केवल अवधारणा का बोध होता है; जैसे, "मैंने उसे देखा और बुलाया भी।" कहीं कहीं "भी" अवधारण-बोधक प्रत्यय "ही" के समान अर्थ देता है, जैसे, "एक भी आदमी नहीं मिला।" "इस काम को कोई भी कर सकता है।" कभी कभी "भी" से आश्चर्य वा संदेह सूचित होता है, जैसे, "तुम वहाँ गये भी थे।" "पत्थर भी कहीं पसीजता है।" कभी कभी इससे आग्रह का भी बोध होता है, जैसे, "उठो भी।" "तुम वहाँ जाओगे भी।" इन पिछले मे "भी" बहुधा "ही" के समान क्रिया-विशेषण होता है।

(आ) विभाजक—या, वा, अथवा, किंवा, कि, या—या,

चाहे-चाहे, क्या-क्या, न-न, न कि, नहीं तो।

इन अव्ययों से दो या अधिक वाक्यों वा शब्दों में से किसी एक का ग्रहण अथवा दोनो का त्याग होता है।

या, वा, अथवा, किवा—ये चारो शब्द प्राय पर्यायवाची हैं। इन मे से "या" उर्दू और शेष तीन सस्कृत हैं। "अथवा" और "किंवा" मे दूसरे अव्ययों के साथ "वा" मिला है। पहले तीन शब्दों का एक-साथ प्रयोग द्विरुक्ति के निवारण के लिए होता है, जैसे, "किसी पुस्तक की अथवा किसी ग्रंथकार या प्रकाशक की एक से अधिक पुस्तकों की प्रशसा में किसीने एक प्रस्ताव पास कर दिया" (सर०)। "या" और "वा" कभी कभी पर्याय-वाची शब्दों को मिलाते हैं जैसे, 'धर्मनिष्ठा या धार्मिक विश्वास।" (स्वा०)। इस प्रकार के शब्द कभी कभी कोष्टक में ही रख दिये जाते हैं; जैसे, "श्रुति (वेद) मे।" (रघु०)। लेखक-गण कभी कभी भूल से "या" के बदले "और" तथा "और" के बदले "या" लिख देते हैं, जैसे, "मुर्दे जलाये और गाडे भी जाते थे और