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कभी कभी जलाके गाड़ते थे।" (इति०)। यहॉ दोनो "और" के स्थान में "या", "वा" और "अथवा" में से कोई भी दो अलग अलग शब्द होने चाहिए। किंवा का प्रयोग बहुधा कविता में होता है; जैसे, "नृप अभिमान मोह बस किवा।" (राम०)। "वे हैं नरक के दूत किंवा सूत हैं कलिराज के।" (भारत०)।

कि—यह (विभाजक) "कि" उद्देशवाचक और स्वरूपवाचक "कि" से भिन्न है। (अं०-२४५-आ, ई)। इसका अर्थ "या" के समान है, परंतु इसका प्रयोग बहुधा कविता ही में होता है; जैसे, "रखिहहिं भवन कि लैहहि साथा।" (राम०)। "कज्जल के कूट पर दीप-शिखा सोती है कि श्याम घनमडल मे दामिनी की धारा है"। (क० क०)। "कि" कभी कभी दो शब्दों को भी मिलाती हैं; जैसे, "यद्यपि कृपया कि अपव्ययी ही हैं धनी मानी यहाँ" (भारत०)। परंतु ऐसा प्रयोग क्वचित होता है।

या—या—ये शब्द जोड़े से आते हैं और अकेले "या" की अपेक्षा विभाग का अधिक निश्चय सूचित करते हैं; जैसे, "या तो इस पेड़ में फॉसी लगाकर मर जाऊँगी या गंगा में कूद पड़ूँगी। (सत्य०)। कभी कभी "कहॉ-कहॉ" के समान इनसे "महत् अंतर" सूचित होता है; जैसे, "या वह रौनक थी या सुनसान हो गया"। कविता मे "या-या" के अर्थ में 'कि-कि' आते हैं, जैसे; "की तनु प्रान कि केवल प्राना। (राम०)।

कानूनी हिंदी में पहले "या" के बदले "आया" लिखते हैं जैसे "आया मर्द या औरत"। "आया" भी उर्दू शब्द है।

प्रायः इसी अर्थ मे "चाहे-चाहे" आते हैं; जैसे, "चाहे सुमेरु का राई करै रचि राई को चाहे सुमेरु बनावै।" (पद्मा०)। ये शब्द "चाहना" क्रिया से बने हुए अव्यय हैं।

क्या—क्या—ये प्रश्नवाचक सर्वनाम समुच्चय-बोधक के समान