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कभी क्रियाविशेषण के समान उपयोग में आता है। (अं०—२३७- सू०)। "इसलिए" के बदले कभी कभी "इससे", "इसवास्ते" वा "इस कारण" भी आता है।

[सू०—(१) "इसलिए" के और अर्थ आगे लिखे जायँगे। (२) अवधारण में "इसलिए" का रूप "इसीलिए" हो जाता है।]

अतएव, अत:—ये संस्कृत शब्द "इसलिए" के पर्यायवाचक हैं और इनका प्रयोग उच्च हिंदी में होता है।

सो—यह निश्चयवाचक सर्वनाम (अं०—१३०) "इसलिए" के अर्थ में आता है, परंतु कभी कभी इसका अर्थ "तब" वा "परंतु" भी होता है। जैसे, "मैं घर से बहुत दूर निकल गया था, सो मैं बड़े खेद से नीचे उतरा। "कस ने अवश्य यशोदा की कन्या के प्राण लिये थे, सा वह असुर था।" (गुटका०)।

[सं०—कानूनी हि घी में "इसलिए" के बदले "लिहाजा" लिखा जाता है।

[टी०—समानाधिकरण समुच्चय-बोधक अव्ययों से मिले हुए साधारण वाक्यों के कोई कोई लेखक अलग अलग लिखते हैं, जैसे, "भारतवासियो को अपनी दशा की परवा नहीं है। पर आपकी इज्जत का उन्हें बड़ा ख्याल है।" (शिव०)। "उस समय स्त्रियो को पढ़ाने की जरूरत न समझी गई होगी, पर अब तो है। अतएव पढाना चाहिये।" (सर०)। इस प्रकार की रचना अनुकरणीय नहीं है।

२४५—जिन अव्ययों के योग से एक मुख्य वाक्य में एक वा अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैं उन्हें व्यधिकरण समुच्चय-बोधक कहते हैं। इनके चार उपभेद हैं—

(अ) कारण-वाचक—क्योंकि, जोकि, इसलिए-कि।

इन अव्ययो से आरंभ होनेवाले वाक्य पूर्ववाक्य का समर्थन करते हैं—अर्थात् पूर्व वाक्य के अर्थ का कारण उत्तर वाक्य के