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"जो" के बदले कभी कभी "कदाचित्" (क्रियाविशेषण) आता है; जैसे, "कदाचित् कोई कुछ पूछे तो मेरा नाम बता देना"। कभी कभी "जो" के साथ ('तो' के बदले ) "सो" समुच्चयबोधक आता है, जैसे "जो आपने रुपयों के बारे में लिखा सो अभी उसका बंदोबस्त होना कठिन हैं।"

"यदि" से संबंध रखनेवाली एक प्रकार की वाक्यरचना हिंदी में अँगरेजी के सहवास से प्रचलित हुई है जिसमें पूर्व वाक्य की शर्त का उल्लेख कर तुरंत ही उसका मंडन कर देते हैं, परंतु उत्तर वाक्य ज्यों का त्यों रहता है; जैसे, "यदि यह बात सत्य हो (जो निस्संदेह सत्य ही है) तो हिंदुओं को संसार में सब से बड़ी जाति मानना ही पड़ेगा"। (भारत)। "यदि" का पर्यायवाची उर्दू शब्द "अगर" भी हिंदी में प्रचलित है।

यद्यपि—तथापि(तोभी)—ये शब्द जिन वाक्यों में आते हैं उनके निश्चयात्मक विधानों परस्पर विरोध पाया जाता है; जैसे, "यद्यपि यह देश तब तक जंगलों से भरा हुआ था तथापि अयोध्या अच्छी बस गई थी।" (इति०)। "तथापि" के बदले बहुधा "तोभी" और कभी कभी "परंतु" आता है; "यद्यपि हम वनवासी हैं तोभी लोक के व्यवहारों को भली भॉति जानते हैं।" (शुकु०)। "यद्यपि गुरु ने कहा है......पर यह तो बड़ा पाप सा है।" (मुद्रा०)।

कभी कभी "तथापि" एक स्वतंत्र वाक्य में आता है; और वहाँ उसके साथ "यद्यपि" की आवश्यकता नही रहती; जैसे, "मेरा भी हाल ठीक ऐसे ही बोने का जैसा है। तथापि एक बात अवश्य है।" (रघु०)। इसी अर्थ में "तथापि" के बदले "तिस-पर-भी" वाक्यांश आता है।

चाहे—परंतु—जब "यद्यपि" के अर्थ में कुछ संदेह रहता है। तब उसके बदले "चाहे" आता है; जैसे, "उसने चाहे अपनी