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सखियों की ओर ही देखा हो; परंतु मैंने यही जाना।" (शकु॰)।

"चाहे" बहुधा संबंधवाचक सर्वनाम, विशेषण वा क्रिया-विशेषण के साथ आकर उनकी विशेषता बतलाता है, और प्रयोग के अनुसार बहुधा क्रिया-विशेषण होता है; जैसे, "यहाँ चाहे जो कह लो; परंतु अदालत में तुम्हारी गीदड़-भबकी नहीं चल सकती।" (परी०)। "मेरे रनवास में चाहे जितनी रानी (रानियाॅ) हों मुझे दोही वस्तु (वस्तुएँ) संसार में प्यारी होंगी"। (शकु०)। "मनुष्य बुद्धि-विषयक ज्ञान में चाहे जितना पारंगत हो जाय, परतु... उसके ज्ञान से विशेष लाभ नहीं हो सकता।" (सर०)। "चाहे जहाॅ से अभी सब दे।" (सत्य०)।

दुहरे संकेतवाचक समुच्चयबोधक अव्ययों में से कभी कभी किसी एक का लोप हो जाता है, जैसे, ( ) "कोई परीक्षा लेता तो मालूम पड़ता।" (सत्य०)। ( ) "इन सब बातो से हमारे प्रभु के सब काम सिद्ध हुए प्रतीत होते हैं तथापि मेरे मन के धैर्य नहीं है।" (रत्ना०)। "यदि कोई धर्म, न्याय, सत्य, प्रीति, पौरुष का हमसे नमूना चाहे, ( ) हम यही कहेंगे, "राम, राम ,राम।" (इति०)। "वैदिक लोग ( ) कितना भी अच्छा लिखें तौभी उनके अक्षर अच्छे नहीं बनते।" (मुद्रा०)।

कि—जब यह संकेतवाचक होता है तब इसका अर्थ "त्योंही" होता है, और यह दोनों वाक्यो के बीच में आता है, जैसे, "अक्टोबर चला कि उसे नींद ने सताया।" (सर०)। "शैव्या रोहिताश्व का मृत कंबल फाड़ा चाहती है कि रंगभूमि की पृथ्वी हिलती है।" (सत्य॰)।

कभी कभी "कि" के साथ उसका समानार्थी वाक्यांश "इतने मे" आता है जैसे, "मैं तो जाने ही को था कि इतने में आप आगये।" (सत्य०)।

(ई) स्वरूपवाचक—कि, जो, अर्थात्, याने, मानो।