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की उनके कुछ विशेष गुणों के कारण सचेतन मान लिया है। जिन पदार्थों में कठोरता, बल, श्रेष्ठता आदि गुण दिखते हैं उनमें पुरुषस्व की कल्पना करके उनके वाचक शब्दों को पुल्लिंग, और जिनमें नम्रता, कोमलता, सुंदरता, आदि गुण दिखाई देते हैं, उनमें स्त्रीत्व की कल्पना करके उनके वाचक शब्दों को स्त्रीलिंग कहते हैं। शेष अप्राणिवाचक शब्दों के बहुधा नपुंसक-लिंग कहते हैं। हिंदी में लिंग के विचार से सब जड पदार्थों को सचेतन मानते है, इसलिए इसमें नपुंसक-लिंग नहीं है। यह लिंग न होने के कारण हिंदी की लिंग-व्यवस्था पूर्वोक्त भाषाओं की अपेक्षा कुछ सहज है, परंतु जड़ पदार्थों में पुरुषत्व या स्त्रीत्व की कल्पना करने के लिए कुछ शब्दों के रूप को तथा दूसरी भाषाओं के शब्दों के मूल लिंगों के छोडकर और कोई आधार नहीं है।]

२५५—जिस संज्ञा से (यथार्थ वा कल्पित) पुरुषत्व का बोध होता है उसे पुल्लिंग कहते हैं; जैसे, लड़का, बैल, पेड़, नगर, इत्यादि। इन उदाहरणों में "लड़का" और "बैल" यथार्थ पुरुषत्व सूचित करते हैं, और "पेड़" तथा "नगर" से कल्पित पुरुषत्व का बोध होता है, इसलिए ये सब शब्द पुल्लिंग हैं।

२५६—जिस संज्ञा से (यथार्थ वा कल्पित) स्त्रीत्व का बोध होता है उसे स्त्रीलिंग कहते हैं, जैसे, लड़की, गाय, लता, पुरी, इत्यादि। इन उदाहरणों में "लड़की" और "गाय" से यथार्थ स्त्रीत्व का और "लता" तथा "पुरी" से कल्पित स्त्रीत्व का बोध होता है, इसलिए ये शब्द स्त्रीलिंग हैं।

लिंग-निर्णय।

२५७—हिंदी में लिंग का पूर्ण निर्णय करना कठिन है। इसके लिए व्यापक और पूरे नियम नहीं बन सकते, क्योंकि इनके लिए भाषा के निश्चित व्यवहार का आधार नहीं है। तथापि हिंदी में लिंग-निर्णय दो प्रकार से किया जा सकता है—(१) शब्द के अर्थ से और (२) उसके रूप से। बहुधा प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार और अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग रूप के अनुसार