पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३)

जातियाँ अवनत होती जाती हैं और उच्च भावों के अभाव में उनमे वाचक शब्ट लुप्त होते जाते हैं।

 विद्वान् और ग्रामीण मनुष्यों की भाषा में कुछ अंतर रहता

है। किसी शब्द का जैसा शुद्ध उच्चारण विद्वान् पंडित करते हैं वैसा सर्व-साधारण लोग नहीं कर सकते। इससे प्रधान भाषा बिगडकर उसकी शाखा-रूप 'नई नई बोलियाँ बन जाती हैं । भिन्न भिन्न दो भाषाओं के पास पास बोले जाने के कारण भी उन दोनों के मेल से एक नई बोली उत्पन्न हो जाती है ।

  भाषागत विचार प्रकट करने में एक विचार के प्रायः कई अंश

प्रकट करने पड़ते हैं। उन सभी अंशों के प्रकट करने पर उस समग्र विचार का मतलब अच्छी तरह समझ में आता है। प्रत्येक पूरी बात को वाक्यकहते हैं। प्रत्येक वाक्य मे प्रायः कई शव्दरहते है। प्रत्येक शब्द एक सार्थक ध्वनिहै जो कई मूल ध्वनियों के योग से वनती है। जब हम बोलते हैं तब शब्दों का उपयोग करते है और भिन्न भिन्न प्रकार के विचारों के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के शब्दों को काम में लाते हैं। यदि हम शब्द का ठीक ठीक उपयोग न करें तो हमारी भाषा में बड़ी गड़बड़ पड़ जाये और संभवत. कोई हमारी बात न समझ सके । यद्यपि भाषा में जिन शब्दो का उपयोग किया जाता है। वे किसी न किसी कारण से कल्पित किये गये है, तो भी जो शब्द जिस वस्तु का सूचक है। उसका इससे, प्रत्यक्ष में, कोई संबंध नहीं । 'परंतु शब्दों ने अपने वाच्य पदार्थादि की भावना को अपने में बॉध सा लिया है जिससे शब्दों का उच्चारण करते ही उन उन पदार्थों का बोध तत्काल हो जाता है। कोई कोई शब्द केवल अनुकरण-वाचक है, पर जिन सार्थक शब्दों से भाषा बनी है।उनके आगे ये शब्द चहुत थोड़े है। .

  जब हम उपस्थित लोगों पर अपने विचार प्रकट करते हैं तव