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(ए) कृदंत की अकारांत संज्ञाएँ; जैसे, लूट, मार, समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकार इत्यादि।

अप०—खेल, नाच, मेल, बिगाड, बोल, उतार, इत्यादि।

(ऐ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट वा हट होता है; जैसे, सजावट, बनावट, घबराहट, चिकनाहट, झंझट, आहट, इत्यादि।
(ओ) जिन सज्ञाओं के अंत में ख होता है, जैसे, ईख, भूख, राख, चीख, कॉख, कोख, साख देख-रेख, लाख (लाक्षा), इत्यादि।

अप०—पाख, रूख।

२—संस्कृत-शब्द।
पुल्लिंग।

(अ) जिन सज्ञाओं के अंत में त्र होता है, जैसे, चित्र, क्षेत्र, पात्र, नेत्र, गोत्र, चरित्र, शस्त्र, इत्यादि।
(अ) नांत संज्ञाएँ, जैसे, पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन, गमन, हरण, इत्यादि।

अप०—'पवन' उभयलिग है।

(इ) "ज" प्रत्ययात संज्ञाएँ, जैसे, जलज, स्वेदज, पिंडज, सरोज, इत्यादि।
(ई) जिन भाववाचक संज्ञाओ के अंत में त्व, त्य, व, र्य होता है, जैसे, सतीत्व, बहुत्व, नृत्य, कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य, धैर्य, इत्यादि।
(उ) जिन शब्दों के अत में "आर," "आय" वा "आस" हो; जैसे, विकार, विस्तार, संसार, अध्याय, उपाय, समुदाय, उल्लास, विकास, हास, इत्यादि।