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अप०—सहाय (उभयलिग), आय (स्त्रीलिंग)।

( ऊ ) "अ" प्रत्ययांत संज्ञाएँ; जैसे, क्रोध, मोह, पाक, त्याग, दोष, स्पर्श इत्यादि।

अप०—"जय स्त्रीलिंग और 'विनय' उभयलिग है।

(ॠ) 'त' प्रत्ययांत संज्ञाएँ; जैसे, चरित, फलित, गणित, मत, गीत, स्वागत, इत्यादि।
(ए) जिनके अंत में 'ख' होता है; जैसे, नख, मुख, सुख, दुःख, लेख, मख, शंख, इत्यादि।

स्त्रीलिंग।

(अ) आकारांत संज्ञाएँ; जैसे, दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, इत्यादि।
(आ) नाकारांत सज्ञाएँ; जैसे, प्रार्थना, वंदना, प्रस्तावना, वेदना, रचना, घटना, इत्यादि।
(इ) "उ" प्रत्ययांत संज्ञाएँ; जैसे, वायु, रेणु, रज्जु, जानु, मृत्यु, आयु, वस्तु, धातु, ऋतु, इत्यादि।

अप०—मधु, अश्रु, तालु, मेरु, तरु, हेतु, सेतु, इत्यादि।

(ई) जिनके अंत में "ति?" वा "नि" होती है, जैसे, गति, मति, जाति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि, ऋद्धि, सिद्धि, इत्यादि।

[सू०—अंत के तीन शब्द "ति" प्रत्ययांत हैं, पर संधि के कारण उनका कुछ रूपांतर हो गया है।]

(उ) "ता" प्रत्ययांत भाववाचक संज्ञाएँ, जैसे, नम्रता, लघुता, सुंदरता, प्रभुता, जड़ता, इत्यादि।
(ऊ) इकारांत संज्ञाएँ; जैसे, निधि, विधि (रीति), परिधि, राशि, अग्नि (आग), छबि, केलि, रुचि, इत्यादि।