(अ) कुछ शब्दों के उसी अर्थ के हिंदी शब्दों का लिंग प्राप्त हुआ है; जैसे,
कंपनी—मण्डली—स्त्री० | नंबर—अंक—पु० |
कोट—अँगरखा—पु० | कमेटी—सभा—स्त्री० |
बूट—जूता—पु० | लेक्चर—व्याख्यान—पु० |
चेन—सॉकल—स्त्री० | वारंट—चालान—पु० |
लैम्प—दिया—पु० | फीस—दक्षिणा—स्त्री० |
पु०—सोडा, डेल्टा, केमरा इत्यादि।
स्त्री०—चिमनी, गिनी, म्युनिसिपैल्टी, लायब्रेरी, हिस्ट्री, डिक्शनरी इत्यादि।
२६६—अधिकांश सामासिक शब्दों का लिंग अंत्य शब्द के लिंग के अनुसार होता है; जैसे, रसाई-घर (पु०), धर्म-शाला (स्त्री०), मा-बाप (पु०) इत्यादि।
[सू०—कई व्याकरणों में यह नियम व्यापक माना गया है; पर दे-एक समासों में यह नियम नहीं लगता; जैसे, "मंद-मति" शब्द केवल कर्मधारय में स्त्रीलिंग है; परंतु बहुब्रीहि में पूरे शब्द का लिंग विशेष्य के अनुसार होता है, जैसे, "मंदमति बालक"।]
२६७—सभा, पत्र, पुस्तक और स्थान के मुख्य नामों को लिंग बहुधा शब्द के रूप के अनुसार होता है; जैसे, "महासभा" (स्त्री०), "महामंडल" (पु०), "मर्यादा" (मी०), "शिक्षा" (स्त्री०), "प्रताप" (पु०), "इंदु" (पु०), "रामकहानी"