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वहुधा कथित भाषा काम में लाते हैं; पर जब हमें अपने विचार दूरवर्ती मनुष्यों के पास पहुँचाने का काम पड़ता है, अथवा भावी संतति के लिए उनके संग्रह की आवश्यकता होती है, तब हम लिखित भाषा का उपयोग करते हैं। लिखी हुई भाषा में शब्द की एक एक मूल-ध्वनि को पहचानने के लिए एक एक चिह्न नियत कर लिया जाता है जिसे वर्ण कहते हैं। ध्वनि कानों का विषय है, पर वर्ण ऑखों का, और यह ध्वनि का प्रतिनिधि है। पहले पहल केवल बोली हुई भापा का प्रचार था, पर पीछे से विचारों को स्थायी रूप देने के लिए कई प्रकार की लिपियाँनिकाली गई । वर्ण-लिपि निकलने के बहुत समय पहले तक लोगों में चित्र-लिपि का प्रचार था, जो आजकल भी पृथ्वी के कई भागों के जंगली लोगों में प्रचलित है । इस देश में भी कहीं कहीं ऐसी पुरानी वस्तुएँ मिली हैं जिनपर चित्र-लिपि के चिह्न मालूम पड़ते हैं। मिसर के पुराने खंडहरों और गुफाओं आदि में पुरानी चित्र-लिपि के अनेक नमूने पाये गये हैं और इन्हींसे वहाँ की वर्णमाला निकली है। कोई कोई यह अनुमान करते हैं कि प्राचीन समय के चित्र-लेख के किसी किसी अवयव के कुछ लक्षण वर्तमान वर्गों के आकर में मिलते हैं, जैसे “ह” में हाथ और “ग” में गाय के आकार का कुछ न कुछ अनुकरण पाया जाता है। जिस प्रकार भिन्न भिन्न भाषाओं में एक ही विचार के लिए बहुधा भिन्न भिन्न शब्द होते हैं उसी प्रकार एक ही मूल-ध्वनि के लिए उनमें भिन्न भिन्न, अक्षर भी होते हैं।

(२) भाषा और व्याकरण ।

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• किसी भाषा की रचना को ध्यानपूर्वक देखने से जान पड़ता है कि उसमें जितने शब्दों का उपयोग होता है। उतने सभी भिन्न भिन्न प्रकार के विचार प्रकट करते हैं और अपने उपयोग के-