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(२३०)
(इ) मनुष्येतर प्राणिवाचक त्र्यक्षरी शब्दों में; जैसे—
बंदर—बंदरी | हिरन—हिरनी | कूकर—कुकरी |
गीदड़-गीदड़ी | मेढक-मेढकी | तीतर–तीतरी |
[सू०—यह प्रत्यय संस्कृत शब्दों में भी आता है।]
२७०—ब्राह्मणेतर वर्णवाचक तथा व्यवसायवाचक और मनुष्येतर कुछ प्राणिवाचक संज्ञाओं के अंत्य स्वर मे "इन" लगाया जाता है; जैसे—
सुनार—सुनारिन | नाती—नातिन | लुहार—लुहारिन |
अहीर—अहीरन | धोबी—धोबिन | बाघ–बाधिन (राम०) |
तेली–तेलिन | कुँजड़ा—कुँजड़िन | सॉप—सॉपिन (राम०) |
(अ) कई एक संज्ञाओं मे "नी" लगती है; जैसे—
ऊँट—ऊँटनी | बाघ—बाघनी | हाथी-हथनी |
मोर—मोरनी | रीछ—रीछनी | सिंह—सिंहनी |
टहलुआ—देहलनी (सर०) | स्यार–स्यारती | |
हिदू-हिंदुनी (सत०) |
२७१—उपनाम-वाचक पुल्लिंग शब्दों के अंत में "आइन" आदेश होता है; और जो आदि अक्षर का स्वर "आ" हो तो उसे ह्रस्व कर देते हैं; जैसे—
पॉडे—पँडाइन | बाबू—बबुआइन | दुबे—दुबाइन |
ठाकुर—ठकुराइन | पाठक—पठकाइन | बनिया—बनियाइन |
बनैनी (अनियमित) | ||
मिसिर—मिसिराइन | लाला—ललाइन | सुकुल—सुकुलाइन |
(अ) कई एक शब्दों के अंत में "आनी" लगाते हैं; जैसे—
खत्री—खत्रानी | देवर—देवरानी | सेठ—सेठानी |
जेठ—जिठानी | मिहतर—मिहतरानी | चौधरी—चौधरानी |