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२७४—कई एक स्त्री-प्रत्ययांत (और स्त्रीलिंग) शब्द अर्थ की दृष्टि से केवल स्त्रियों के लिए आते हैं, इसलिए उनके जोड़े के पुल्लिंग शब्द भाषा में प्रचलित नहीं हैं। जैसे, सती, गाभिन, गर्भवती सौत, सुहागिन, अहिवाती, धाय इत्यादि। प्रायः इसी प्रकार के शब्द डाइन, चुडैल, अप्सरा आदि हैं।

२७५—कुछ शब्द रूप में परस्पर जोड़े के जान पड़ते हैं, पर यथार्थ में उनका अर्थ अलग अलग है; जैसे—

सॉड़ (बैल), सॉड़नी (ऊँटनी), सॉड़िया (ऊँट का बच्चा)।
डाकू (चोर), डाकिन, डाकिनी (चुडैल)।
भेड़ (भेड़े की मादा), भेड़िया (एक हिसक जीवधारी, वृक)।'

२—संस्कृत-शब्द।

२७६—कुछ पुल्लिग संज्ञाओं में "ई" प्रत्यय लगता है—

(अ) व्यंजनांत संज्ञाओं मे; जैसे—
हि० सं०-मू० स्रो० हिं० सं०-मू० स्रो०
राजा राजन् राज्ञी विद्वान् विद्वस् विदुषी
युवा युवन् युवती महान् महत् महती
भगवान् भगवत् भगवती मानी मानिन् मानिनी
श्रीमान् श्रीमत् श्रीमती हितकारी हितकारिन् हितकारिणी
(अ) अकारांत संज्ञाओ मे, जैसे—
ब्राह्मण—ब्राह्मणी सुंदर—सुंदरी
पुत्र—पुत्री गौर—गौरी
देव—देवी पंचम—पंचमी
कुमार—कुमारी नद—नदी
दास—दासी तरुण—तरुणी
(इ) ऋकारांत पुल्लिंग संज्ञाएँ हिंदी मे आकारांत हो जाती हैं,