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२८४—हिंदी में कई एक पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग शब्द दूसरे ही होते हैं, जैसे—

राजा—रानी पुरुष—स्त्री
पिता—माता मर्द, आदमी—औरत
ससुर—सास पुत्र—कन्या
साला—साली, सरहज वर—वधू
भाई—बहिन,भावज बेटी—बहू, पतोहू
लोग—लुगाई साहब—मेम (अँगरेजी)
नर—मादा बाबा—बाई (क्वचित्)

[सू०—कुछ पुल्लिंग शब्दों के जो दो दो स्त्रीलिंग रूप हैं उनमें से किसी किसी के अर्थ में अतर पाया जाता है। कारण यह है कि स्त्रीलिंग से केवल स्त्री-जाति ही को बोध नहीं होता, बरन उससे किसी की स्त्री का भी अर्थ सूचित होता है। "चेली" कहने से केवल दीक्षिता स्त्री ही का बोध नहीं होता, वरन चेले की स्त्री भी सूचित होती है, चाहे उस स्त्री ने दीक्षा में भी ली हो। जहाँ एक ही स्त्रीलिंग शब्द से ये दोनों अर्थ सूचित नहीं होते वहीं स्त्रीलि ग में बहुधा दे। शब्द आते हैं। "साली" शब्द से केवल स्त्री की बहिन का बोध होता है, साले की स्त्री का नहीं, इसलिए इस पिछले अर्थ में "सरहज" शब्द आता है। इसी प्रकार "भाई" शब्द का दूसरा स्त्रीलिग "भावज" है जे भाई की स्त्री का बोधक है। यह शब्द संस्कृत "भ्रातृजाया" से बना है। "भावज" के दूसरे रूप "भौजाई" और "भाभी" हैं। "बेटी" का पति "दामाद" या "जँवाई" कहलाता है।]

२८५–एकलिंग प्राणिवाचक शब्दों में पुरुष वा स्त्री जाति का भेद करने के लिए उनके पूर्व पुरुष और स्त्री तथा मनुष्येतर प्राणिवाचक शब्दों के पहले क्रमशः "नर" और "मादा" लगाते हैं, जैसे, पुरुष-छात्र, स्त्री छात्र; नर-चील, मादा-चील, नर-भेड़िया, मादा-भेड़िया इत्यादि। "मादा" शब्द को कोई काई "मादी" चालते हैं। यह शब्द उर्दू का है।