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दूसरा अध्याय।

वचन।

२८६—संज्ञा ( और दूसरे विकारी शब्दों ) के जिस रूप से संख्या का बोध होता है उसे वचन कहते हैं। हिंदी में दो वचन होते है—

(१) एकवचन (२) बहुवचन।

२८७—संज्ञा के जिस रूप से एक ही वस्तु का बोध होता है उसे एकवचन कहते हैं; जैसे, लड़का, कपड़ा, टोपी, रंग, रूप इत्यादि।

२८८—संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं का बोध होता है उसे बहुवचन कहते हैं, जैसे लड़के, कपड़े, टोपियाँ, रंगों मे, रूपों से, इत्यादि।

(अ) आदर के लिए भी बहुवचन आता है; जैसे, "राजा के बड़े बेटे आये हैं।" "कण्व ऋषि तो ब्रह्मचारी हैं।" (शकु०)। "तुम बच्चे हो।" (शिव०)।

[टी०—हिंदी के कई-एक व्याकरणों में वचन का विचार कारक के साथ किया गया है जिसका कारण यह है कि बहुत से शब्दों में बहुवचन के प्रत्यय विभक्तियों के बिना नहीं लगाये जाते । "मूल रङ्ग तीन हैं"—इस वाक्य में "रग" शब्द बहुवचन है, पर यह बात केवल क्रिया से तथा विधेय-विशेषण "तीन" से जानी जाती है; पर स्वयं 'रंग' शब्द में बहुवचन का कोई चिह्न नहीं है, क्योंकि यह शब्द विभक्ति-रहित है। विभक्ति के योग से "रंग" शब्द का बहुवचन रूप "रंगों" होता है; जैसे, "इन रंगों में कौन अच्छा है?" वचन का विचार कारक के साथ करने का दूसरा कारण यह है कि कई शब्दों का विभक्ति-रहित बहुवचन रूप विभक्ति-सहित बहुवचन रूप से भिन्न होता है; जैसे, "ये टोपियां उन टोपियों से छोटी हैं।" इस उदाहरण में विभक्ति-रहित बहुवचन "टोपियां" और विभक्ति-सहित बहुवचन टोपियां रूप एक दूसरे से भिन्न हैं। इसके सिवा संस्कृत में वचन झा विचार विभक्तियों ही के साथ होता है, इसलिए हिंदी में भी उसी चाल का अनुकरण किया जाता है।