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अनुसार कोई अधिक और कोई कम आवश्यक होते हैं । फिर, एक ही विचार को कई रूपों में प्रकट करने के लिए शब्दों के भी कई रूपांतर हो जाते हैं। भाषा में यह भी देखा जाता है कि कई शब्द दूसरे शब्दों से बनते हैं और उनसे एक नया ही अर्थ पाया जाता है। वाक्य में शब्दों का उपयोग किसी विशेष क्रम से होता है और उनमें रूप अथवा अर्थ के अनुसार परस्पर संबंध रहता है। इस अवस्था में यह आवश्यक है कि पूर्णता और स्पष्टतापूर्वक विचार प्रकट करने के लिए शब्दों के रूपों तथा प्रयोग मे स्थिरता और समानता हो । जिस शास्त्र मे शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग के नियमों का निरूपण होता है उसे व्याकरण कहते हैं । व्याकरण के नियम बहुधा लिखी हुई भाषा के आधार पर निश्चित किये जाते हैं, क्योंकि उसमें शब्दों का प्रयोग बोली हुई भाषा की अपेक्षा अधिक सावधानी से किया जाता है। व्याकरण ( वि +आ + करण ) शब्द का अर्थ “भली भाति समझाना" है। व्याकरण में वे नियम समझाये जाते हैं जो शिष्ट जनों के द्वारा स्वीकृत शब्दों के रूपों और प्रयोग में दिखाई देते हैं ।

व्याकरण भापा के अधीन है और भाषा ही के अनुसार बदलता रहता है । वैयाकरण का काम यह नहीं कि वह अपनी ओर से नये नियम बनाकर भाषा को बदल दे । वह इतना ही कह सकता है कि अमुक प्रयोग अधिक शुद्ध है अथवा अधिकता से किया जाता है, पर उसकी सम्मति मानना या न मानना लोगों की इच्छा पर है। व्याकरण के संबंध में यह बात स्मरण रखने योग्य है कि भाषा को नियमबद्ध करने के लिए व्याकरण नहीं बनाया जाता, वरन भाषा पहले बोली जाती है और उसके आधार पर व्या-करण की उत्पत्ति होती है। व्याकरण और छंद:शास्त्र का निर्माण करने के बरसों पहले से भाषा बोली जाती है और कविता रची जाती है।