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ने बहुवचन में योद्धा ही लिखा है, जैसे, "जितने घायल योधा बचे थे"। (प्रेम॰)। "बड़े-बड़े योधा खड़े।" (साखी॰)। "महाभारत" में भी "याद्धा" शब्द बहुवचन में लिखा गया है, जैसे, "अर्जुन ने कैरिवो के अनगिनत योद्धा और सैनिक मार गिराये।"

सू॰—यदि यैगिक शब्दों का पूर्व-शब्द हिंदी का और आकारांत पुल्लिंग हो तो उत्तर-शब्द के साथ बहुवचन में उसका भी रूपांतर होता है, जैसे, लड़का-बच्चा—लड़के-बच्चे, छापाखाना—छापेखाने इत्यादि। अप०—"बालाखाना" का बहुवचन "बालाखाने" होता है।]

अप॰—(३) व्यक्तिवाचक आकारात पुल्लिग सज्ञाएँ बहुवचन मे (अं०—२९८) अविकृत रहती हैं; जैसे, सुदामा, शतधन्वा, रामबाला इत्यादि।

२९०—हिंदी आकारांत पुल्लिग शब्दों को छोड़ शेष हिंदी और सस्कृत पुल्लिग शब्द देने वचने में एक-रूप रहते हैं, जैसे—

व्यंजनांत सज्ञाएँ—हिंदी में व्यंजनांत संज्ञाएँ नही हैं। सस्कृत की अधिकांश व्यंजनांत संज्ञाएँ हिंदी में अकारांत पुल्लिग हो जाती हैं, जैसे, मनस्=मन, नमन्=नाम, कुमुद्=कुमुद, पंथिन्-पंथ, इत्यादि। जे इने गिने संस्कृत व्यजनांत शब्द (जैसे, विद्वान्, सुहृद्, भगवान्, श्रीमान् आदि) हिंदी में जैसे के तैसे आते हैं, उनका भी रूपातर अकारांत पुल्लिग शब्दों के समान होता है।

अकारांत संज्ञाएँ—(हिंदी) घर—घर
(संस्कृत) बालक—बालक

इकारांत—हिंदी शब्द नहीं हैं।
(संस्कृत)मुनि—मुनि

ईकारांत—(हिंदी) भाई—भाई
(संस्कृत) पक्षी-पक्षी