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गाय—गायें रात—रातें
बात—बातें झील—झीलें

[सू॰—संस्कृत में आकारांत स्त्रीलिंग शब्द नहीं हैं, पर हिंदी में संस्कृत के जो थोड़े से व्यजनांत स्त्रीलिंग शब्द आते है वे बहुधा आकारांत हो जाते है; जैसे, समिध्= समिध, सरित्= सरित, आशिस्=अशिस, इत्यादि।

२९२—इकारात और ईकारांत संज्ञाओं मे "ई" को ह्रस्व करके अंत्य स्वर के पश्चात् "याँ" जोड़ते हैं; जैसे—

तिथि—तिथियाँ टोपी—टोपियाँ
शक्ति—शक्तियाँ थाली—थालियाँ
रीति—रीतियाँ रानी—रानियाँ
राशि—राशियाँ नदी—नदियाँ

[सू॰—(१) हिंदी में इकारांत स्त्रीलिंग संज्ञाएँ संस्कृत की हैं, और ईकारांत संज्ञाएँ संस्कृत और हिदी दोनों की हैं।]

[सू॰—(२) 'परीक्षा-गुरु' में ईकारात संज्ञाओं को बहुवचन "ये" जगाकर बनाया गया है, जैसे, "टोपिये"। यह रूप आजकल अप्रचलित है।]

(अ) याकारांत (ऊनवाचक) संज्ञाओं के अंत में केवल अनुस्वार लगाया जाता है, जैसे—
लठिया—लठियाँ डिबिया—डिबियाँ
लुटिया—लुटियाँ गुड़िया—गुड़ियाँ
बुढ़िया—बुढियाँ खटिया—खटियाँ

[सू॰—कई लोग इन शब्दों का बहुवचन ये चा एँ लगाकर बनाते है, जैसे, चिढ़ियाएँ, कुंडलियाये, इत्यादि। मे रूप अशुद्ध हैं। इनका बहुवचन उन्हीं ईमारत शब्दों के समान होता है जिनसे ये बने है।

२९३—शेष स्त्रीलिंग शब्दों में अत्य स्वर के परे एँ? लगाते हैं और "ऊ" को ह्रस्व कर देते हैं, जैसे—

लता—लताएँ वस्तु—वस्तुएँ

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