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होता है तब उनके आकारांत मूल शब्द में 'अ' के स्थान में 'ए' आदेश कर देते हैं; जैसे, सीधापन-सीधेपन, आदि।

२९९—बहुधा द्रव्यवाचक संज्ञाओं का बहुवचन नहीं होता; परंतु जब किसी द्रव्य की भिन्न भिन्न जातियॉ सूचित करने की आवश्यकता होती है तब इन संज्ञाओं का प्रयोग बहुवचन में होता है; जैसे, "आजकल बाज़ार में कई तेल बिकते हैं।" "दोनों सोने चोखे हैं।"

३००—पदार्थो की बड़ी संख्या, परिमाण वा समूह सूचित करने के लिए जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग बहुधा एकवचन में होता है, जैसे, "मेले में केवल शहर का आदमी आया।" "उसके पास बहुत रुपया मिला।" "इस साल नारंगी बहुत हुई हैं।"

३०१—कई एक शब्द (बहुत्व की भावना के कारण) बहुधा बहुवचन ही में आते हैं; जैसे, समाचार, प्राण, दाम, लोग, होश, हिज्जे, भाग्य, दर्शन। उदा०—"रिपु के समाचार।" (राम०)। "आश्रम के दर्शन करके।" (शकु०)। "मलयकेतु के प्राण सूख गये।" (मुद्रा०)। "आम के आम, गुठलियों के दाम।"(कहा०)। "तेरे भाग्य खुल गए (शकु०)। "लोग कहते हैं।"

३०२–आदरार्थ बहुवचन में व्यक्तिवाचक अथवा उपनामवाचक संज्ञाओं के आगे महाराज, साहब, महाशय, महोदय, बहादुर, शास्त्री, स्वामी, देवी, इत्यादि लगाते हैं। इन शब्दो का प्रयोग अलग अलग है—

जी—यह शब्द, नाम, उपनाम, पद, उपपद इत्यादि के साथ आता है और साधारण नौकर से लेकर देवता तक के लिए इसका प्रयोग होता हैं, जैसे, गयाप्रसादजी, मिश्रजी, बाबूजी, पदवारीजी, चैधरीजी, रानीजी, रामजी, सीताजी, गणेशजी। कभी कभी इसका प्रयोग नाम और उपनाम के बीच में होता है; जैसे, मथुराप्रसादजी मिश्र।