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विभक्तियों की व्युत्पत्ति बहुतही विवाद-ग्रस्त विषय है। इसमें बहुत कुछ मूल शोध की आवश्यकता है और जब तक अपभ्रंश-प्राकृत और प्राचीन हिंदी के बीच की भाषा का पता न लगे तब तक यह विषय बहुधा अनुमान ही रहेगा।

(१) कर्ता कारक—इस कारक के अधिकाश प्रयोगों में कोई विभक्ति नहीं आती। हिंदी आकारात पुल्लिंग शब्दों को छोड़कर शेष पुल्लिंग शब्दों का मूल रूप ही इस कारक के दोनों वचनों में आता है। पर स्त्रीलिंग शब्दों और आकारात पुल्लिंग शब्द के बहुवचन में रूपांतर होता है, जिसका विचार वचन के अध्याय में हो चुका है। विभक्ति का यह अभाव सूचित करने के लिए ही कर्ता कारक की विभक्तियों में ० चिह्न लिख दिया जाता है। हिंदी में कर्त्ता कारक की कोई विभक्ति (प्रत्यय) न होने का कारण यह है। कि प्राकृत में अकारात और आकारात पुल्लिंग सज्ञाओं को छोड़ शेष पुल्लिंग और स्त्रीलिंग संज्ञाओं की प्रथमा (एकवचन) विभक्ति में कोई प्रत्यय नहीं है और संस्कृत के कई एक तत्सम शब्द भी हिंदी में प्रथमा एक वचन के रूप में आये हैं।

हिंदी में कर्ता कारक की जो "ने" विभक्ति आती है वह यथार्थ में संस्कृत की तृतीया विभक्ति (करण कारक) के "ना" प्रत्यय का रूपातर है, परतु हिंदी में "ने" का प्रयोग सस्कृत "ना" के समान करण (साधन) के अर्थ में कभी नहीं होता। इसलिए उसे हिंदी में करण कारक की (तृतीया) विभक्ति नहीं मानते। ("ने" का प्रयेाग वाक्य-विन्यास के कारक प्रकरण में लिखा जायगा) यह "ने" विभक्ति पश्चिमी हिंदी का एक विशेष चिह्न है; पूर्वी हिंदी (और बँगला, उड़िया आदि भाषाओं) में इसका प्रयोग नहीं होता। मराठी में इसके दोनों वचनों के रूप क्रमशः "ने" और "नी" हैं। "ने" विभक्ति को अधिकांश (देश और विदेशी) वैया-