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"से उठा देगा ।" (मुद्रा॰)। "तट पर से।" (शिव॰)। "कुएँ में का मेंढक।" "जहाज पर के यात्री", इत्यादि।

(अ) संबंध-कारक के साथ कभी-कभी जो विभक्ति आती है वह भेद्य के अध्याहार के कारण आती है; जैसे, "इसे राँड़ के ( ) को बकने दीजिये।" (शकु॰)। "यह काम किसी घर के ( ) ने किया है।" कभी-कभी संबंध-कारक को संज्ञा मानकर उसका बहुवचन भी कर देते हैं; जैसे, "यह काम घरकों ने किया है।" (घरकों ने=घरवालों ने।)

३०८—कोई-कोई विभक्तियाँ कुछ अव्ययों में भी पाई जाती हैं, जैसे:—

को—कहाॅ को, यहाँ को, आगे को।

से—कहाँ से, वहाँ से, आगे से।

को—कहाॅ का, जहाँ का, कब को।

पर—यहाँ पर, जहाँ पर।

संज्ञाओं की कारक-रचना।

३०९—विभक्तियो के योग के पहले संज्ञाओ का जो रूपांतर होता है उसे विकृत रूप कहते हैं, जैसे, "घोड़ा" शब्द के आगे "ने" विभक्ति के योग से एकवचन में "घोड़े" और बहुवचन में "घोड़ों" हो जाता है। इसलिए "घोड़े" और "घोड़ों" विकृत रूप हैँ। विभक्ति-रहित कर्ता और कर्म को छोड़कर शेष कारक जिन मे संज्ञा वा सर्वनाम का विकृत रूप आता है, विकृत कारक कहलाते हैं।

३१०—एकवचन में विकृत रूप का प्रत्यय "ए" है जो केवल हिंदी और उर्दू (तद्भव) अकारांत पुल्लिंग संज्ञाओं में लगाया जाता है; जैसे, लड़का—लड़के ने, घोड़ा—घोड़े ने, सोना—सोने का, परदा—परदे में, अंधा—हे अंधे, इत्यादि (अं॰—२८९)।