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अप॰—(५) यदि विकारी संज्ञाओं (और दूसरे शब्दों) का प्रयोग शब्द ही के अर्थ में हो तो विभक्ति के पूर्व उनको विकृत रूप नहीं होता, जैसे, 'घोड़ा' का क्या अर्थ है, "मैं" को सर्वनाम कहते हैं, "जैसा" से विशेषता सूचित होती है।

३११—बहुवचन में विकृत रूप के प्रत्यय और यों हैं।

(अ) अकारांत, विकारी आकारांत और हिंदी याकारांत शब्दो के अंत्यस्वर में ओं आदेश होता है, जैसे, घर—घरों को (पुं॰), बात—बातों में (स्त्री॰), लड़का-लड़कों का (पुं॰), डिबिया—डिबियों में (स्त्री॰)।
(आ) मुखिया, अगुआ, पुरखा और बाप-दादा शब्दों का विकृत रूप बहुधा इसी प्रकार से बनता है; जैसे, मुखियों को, अगुओं से, बाप-दादों का, इत्यादि।

[सू॰—संस्कृत के हलत शब्दों का विकृत रूप अकारांत शब्दों के समान होता है, जैसे, विद्वान्‌—विद्वानों को, सरित्‌-सरितों को, इत्यादि।]

(इ) ईकारांत सज्ञाओं के अंत्य ह्रस्व स्वर के पश्चात् "यों" लगाया जाता है, जैसे, मुनि—मुनियों के, हाथी—हाथियों से, शक्ति—शक्तियों का, नदी—नदियों में, इत्यादि।
(ई) शेष शब्दो में अंत्य स्वर के पश्चात् "ओं" आता है, जैसे, राजा—राजाओं को, साधु—साधुओं में, माता—माताओं से, धेनु—धेनुओं को, चौबे-चौबेओं में, जौ—जौओं को।

[सू॰—विकृत रूप के पहले ई और ऊ ह्रस्व हो जाते हैं। (अ॰—२९२,२९३)]

(उ) ओकारांत शब्दों के अंत में केवल अनुस्वार आता है; और सानुस्वार ओकारांत तथा ओकारांत संज्ञाओं में कोई रूपांतर नहीं होता; जैसे, रासो—रासो में, कोदों—कोदों से, सरसो—सरसों का, इत्यादि। (अं॰—२९३—३)।