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विचारों में शुद्धता तर्क-शास्त्र के ज्ञान से और भाषा की रोचकता साहित्य-शास्त्र के ज्ञान से आती है।

हिंदी-व्याकरण में प्रचलित साहित्यिक हिंदी के रूपांतर और रचना के बहु-जन-मान्य नियमों का क्रमपूर्ण संग्रह रहता है। इसमें प्रसंग-वश प्रांतीय और प्राचीन भाषाओं का भी यत्र तत्र विचार किया जाता है; पर वह केवल गौण रूप और तुलना की दृष्टि से।

(५) व्याकरण के विभाग ।

व्याकरण भाषा-संबंधी शास्त्र है और भाषा का मुख्य अंग वाक्य है। वाक्य शब्दों से बनता है और शब्द प्रायः मूल-ध्वनियों से । लिखी हुई भाषा में एक मूल-ध्वनि के लिए प्रायः एक चिह्न रहता है जिसे वर्ण कहते हैं। वर्ण, शब्द और वाक्य के विचार से व्याकरण के मुख्य तीन विभाग होते हैं--(१) वर्णविचार, (२) शब्द-साधन,(३) वाक्य-विन्यास।

(१) वर्ण-विचार व्याकरण का वह विभाग है जिसमें वर्षों के आकार, उच्चारण और उनके मेल से शब्द बनाने के नियम दिये जाते हैं।

(२) शब्द-साधन व्याकरण के उस विभाग को कहते हैं। जिसमें शब्दों के भेद, रूपांतर और व्युत्पत्ति का वर्णन रहता है।

(३) वाक्य-विन्यास व्याकरण के उस विभाग का नाम है जिसमें वाक्यों के अवयवों का परस्पर संबंध बताया जाता है और शब्दों से वाक्य बनाने के नियम दिये जाते हैं।

सू॰--कोई कोई लेखक गद्य के समान पद्य को भाषा का एक भेद मानकर व्याकरण में उसके अंग--छंद, रस और अलंकार--को विवेचन करते हैं। पर ये विषय यथार्थ में साहित्य शास्त्र के अंग हैं, जो भाषा को रोचक और प्रभावशालिनी बनाने के काम आते हैं।