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(२६९)
कारक | एकवचन | बहुवचन | |
कर्म | बहू को | बहुओं को | |
संबोधन | हे बहू | हे बहुओ | |
(८) औकारांत। | |||
कर्त्ता | गौ | गैाएँ | |
गौ ने | गौओं ने | ||
कर्म | गौ को | गौओं को | |
संबोधन | हे गौ | हे गौओ | |
(९) सानुस्वार आकारांत। | |||
कर्त्ता | सरसो | सरसों | एकवचन के समान |
सरसों ने | |||
कर्म | सरसों को | सरसों को | |
संबोधन | हे सरसों | हे सरसों |
३१३—तत्सम संस्कृत संज्ञाओं का मूल संबोधन-कारक (एकवचन) भी उच्च हिंदी और कविता में आता है; जैसे,
व्यंजनांत संज्ञाएँ—राजन्, श्रीमन्, विद्वन्, भगवन्, महात्मन्, स्वामिन्, इत्यादि।
आकारांत संज्ञाएँ—कविते, आशे, प्रिये, शिक्षे, सीते, राधे, इत्यादि।
इकारांत संज्ञाएँ—हरे, मुने, सखे, मते, सीतापते, इत्यादि।
ईकारांत संज्ञाएँ—पुत्रि, देवि, मानिनि, जननि, इत्यादि।
उकारांत संज्ञाएँ—बंधो, प्रभो, धेनो, गुरो, साधो, इत्यादि।
ऋकारांत संज्ञाएँ—पितः, दातः, मातः, इत्यादि।
विभक्तियों और संबंध-सूचक अव्ययों में संबंध।
३१४—विभक्ति के द्वारा संज्ञा (या सर्वनाम) का जो संबंध क्रिया वा दूसरे शब्दो के साथ प्रकाशित होता है वही संबंध कभी कभी संबंध-सूचक अव्यय के द्वारा प्रकाशित होता है, जैसे, "लड़का