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नहाने को गया है।" अथवा "नहाने के लिये गया है।" इसके विरुद्ध संबंध-सूचकों से जितने संबंध प्रकाशित होते हैं उन सब के लिये हिदी में कारक नही हैं; जैसे, "लड़की नदी तक गया", "चिड़िया धोती समेत उड़ गई", "मुसाफ़िर पेड़ तले बैठा है", "नौकर गाँव के पास पहुँचा, इत्यादि।

[टी॰—यहाँ अब ये प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि जिन संबंध-सूचकों से कारकों का अर्थ निकलता है उन्हें कारक क्यों न मानें और शब्दों के सब प्रकार के परस्पर संबंध सूचित करने के लिये कारों की संख्या क्यों न बढ़ाई जाय? यदि "नहाने को" कारक माना जाता है तो "नहाने के लिये" को भी कारक मानना चाहिये और यदि "पेड़ पर" एक कारक है ते "पेड़ तले" दूसरा कारक होना चाहिये।

इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिये विभक्तियों और संबंध-सूचकों की उत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है। इस विषय में भाषाविदों का यह मत है कि विभक्तियों और संबंध-सूचकों का उपयेाग बहुधा एक ही है। भाषा के आदि काल में विभक्तियाँ न थीं और एक शब्द के साथ दूसरे का संबंध स्वतंत्र शब्द के द्वारा प्रकाशित होती थी। बार बार उपयोग में आने से इन शब्दों के टुकड़े हो गये और फिर उनका उपयेाग प्रत्यय रूप से होने लगा। संस्कृत सरीखी प्राचीन भाषाओं की संमेगात्मक विभक्तियाँ भी स्वतत्र शब्दों के टुकड़े हैं। मिश्रजी "विभक्ति-विचार" में लिखते हैं कि "सु, औ, जस्, अम्, औ, शस्, टा, भ्यां, भोस्, आदि के स्वतंत्र रूप से दर्साना ही इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि ये चिह्न स्वतंत्र शब्दों से ही पूर्व काल में उपजे थे।" किसी भाषा में बहुत सी और किसी थोड़ी विभक्तियाँ होती है। जिन भाषाओं में विभक्तियोँ की संख्या अधिक रहती है (जैसे संस्कृत में है) इनमें संबंध-सूचकों का प्रचार अधिक नहीं होता। भिन्न भिन्न भाषाओं में रूप के जे भेद दिखाई देते हैं उनका एक विशेष कारण यही है कि संबंध-सूचको का उपयोग किसीमें स्वतंत्र रूप से और किसी प्रत्यय रूप से हुआ है।

इस विवेचन से जान पढ़ता है कि विभक्तियों और संबंध-सूचकों की उत्पत्ति प्रायः एक ही प्रकार की है। अर्थ की दृष्टि से भी दोनों समान ही है, परंतु रूप और प्रयोग की दृष्टि से दोनों में अंतर है। इसलिये कारक का विचार केवल