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अर्थ के अनुसार ही न करके रूप और प्रयोग के अनुसार भी करना चाहिये। जिस प्रकार लिंग और वचन के कारण संज्ञाओं को रूपांतर होता है उसी प्रकार शब्दों का परस्पर संबंध सूचित करने के लिये भी रूपांतर होता है और उसे (हिंदी में) कारक कहते हैं। यह रूपांतर एक शब्द में दूसरा शब्द जोड़ने से नहीं, किंतु प्रत्यय जोड़ने से होता है। संबंध-सूचक अव्यय एक प्रकार के स्वतंत्र शब्द हैं, इसलिये संबंध-सूचकांत संज्ञाओं के कारक नहीं कहते। इसके सिवा, कुछ विशेष प्रकार के मुख्य संबंधों ही को कारक मानते हैं, औरों को नहीं। यदि सब संबंध-सूचकांत संज्ञाओं को कारक माने तो अनेक प्रकार के संबंध सूचित करने के लिये कारकों की संख्या न जाने कितनी बढ़ जाय।

विभक्तियाँ जिस प्रकार संबंध-सूचकों से (रूप और प्रयोग में) भिन्न हैं उसी प्रकार में तद्धित और कृदंत (प्रत्ययों) से भी भिन्न हैं। कृदंत वा तद्धित प्रत्ययों के आगे विभक्तियों आती है, परंतु विभक्तियों के पश्चात् कृदंत व तद्धित प्रत्यय बहुधा नहीं आते।

इसी विषय के साथ इस बात का भी विवेचन आवश्यक जान पढता है कि विभक्तियाँ संज्ञाओं (और सर्वनामों) में मिलाकर लिखी जायँ वा उनसे पृथक्। इसके लिये पहिले हम दो उदाहरण उन पुस्तकों में से देते हैं जिनके लेखक संयोगवादी हैं—

(१)

"अब यह कैसे मालूम हो कि लोग जिन बातोंको कष्ट मानते हैं उन्हें श्रीमान् भी कष्टही मानते हो। अथवा आपके पूर्ववर्ती शासकने जो काम किये आप भी उन्हें अन्याय भरे काम मानते हों? साथ ही एक और बात है। प्रजाके लोगोंकी पहुँच श्रीमान् तक बहुत कठिन है। पर आपकी पूर्ववर्ती शासक आपसे पहलेही मिल चुका और जो कहना था वह कह गया।" (शिव॰)।

(२)

"प्रायः पौने आठ सौ वर्ष महाकवि चंदके समयसे अब तक बीत चुके हैं। चदके सौ वर्ष बाद ही अलाउद्दीन खिलजीके राज्यमें दिल्लीमें फारसी भाषाका सुप्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो हुआ। कवि अमीर खुसरोकी मृत्यु सन् १३२५ ईस्वीमें हुई थी। मुसलमान कवियेमें उक्त अमीर खुसरो हिंदी काव्य रचनाके विषयमें सर्व प्रथम और प्रधान माना जाता है।" (विभक्ति॰)।

इन अवतरण से जान पढेगा कि स्वय संयोगवादी लेखक ही अभी तक-एक-मत नहीं है। जिस एक शब्द (अथवा प्रत्यय) के गुप्तजी मिलाकर लिखते