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करणकारक—द्वारा, करके, ज़रिये, कारण, मारे।

संप्रदानकारक—लिए, हेतु, निमित्त, अर्थ, वास्ते।

अपादानकारक—अपेक्षा, बनिस्बत, सामने, आगे, साथ।

अधिकरण—मध्य, बीच, भीतर, अंदर, ऊपर।

३१६—हिंदी में कुछ संस्कृत कारकों का—विशेष कर करणकारक का प्रयोग होता है, जैसे, सुखेन (सुख से), कृपया (कृपा से), येन-केन-प्रकारेगा, मनसा-वाचा-कर्मणा, इत्यादि। "रामचरितमानस" में छंद बिठाने के लिए कहीं कहीं शब्दों में कर्मकारक की विभक्ति (व्याकरण के विरुद्ध) लगाई गई है; जैसे "जय राम रमा रमणं।" ऐसा प्रयोग "रासो" और दूसरे प्राचीन काव्यों में भी मिलता है।

(क) हिंदी में कभी कभी उर्दू भाषा के भी कुछ कारक आते हैं; जैसे,

करण और अपादान—इनकी विभक्ति "अज़" (से) है जो दो एक शब्दों में आती है, जैसे, अज खुद (आपसे), अज़ तरफ़ (तरफ़ से)।

संबंधकारक—इसमें भेद्य पहले आता है और उसके अंत में "ए" प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे, सितारे-हिद (हिद के सितारे), दफ़्तरे-हिंद (हिद का दफ़्तर), बामे-दुनिया (दुनिया की छत)।

अधिकरण कारक—इसकी विभक्ति "दर" है जे "अज़" के समान कुछ संज्ञाओं के पहले आती है; जैसे, दर हकीक़त (हकीक़त में), दर असल (असल में)। कई लोग इन शब्दों को भूल से "दर हकीक़त में" और "दर असल में" बोलते हैं। 'फिलहाल' शब्द में 'फ़ो' अरबी प्रत्यय है और वह फारसी 'दर' का पर्यायवाची है। 'फ़िलहाल' को अर्द्ध शिक्षित 'फ़िलहाल मे' कहते हैं।


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