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चौथा अध्याय।

सर्वनाम।

३१७—संज्ञाओं के समान सर्वनामों में वचन और कारक होते हैं; परंतु लिंग के कारण इनका रूप नही बदलता।

३१८—विभक्ति-रहित (कर्त्ता-कारक के) बहुवचन में, पुरुष-वाचक (मैं, तू) और निश्चयवाचक (यह, वह) सर्वनामों को छोड़ कर, शेष सर्वनामों का रूपांतर नहीं होता; जैसे,

एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
मैं हम आप आप
तू तुम जो जो
यह ये कौन कौन
वह वे क्या क्या
सो सो कोई कोई
कुछ कुछ

इन उदाहरणों से जान पड़ेगा कि "मैं" और "तू" का बहुवचन अनियमित है; परंतु "यह" तथा "वह" का नियमित है। संबंध-वाचक "जो" के समान नित्य-संबंधी "सो" का भी, बहुवचन में, रूपांतर नहीं होता। कोई कोई लेखक बहुवचन में "यह" और "वह" का भी रूपांतर नहीं करते। (अं॰—१२२, १२८)। "क्या" और "कुछ" का प्रयोग बहुधा एकवचन ही में होता है।

३१९—विभक्ति के योग से अधिकांश सर्वनाम दोनों वचनों में विकृत रूप में आते हैं, परंतु "कोई" और निजवाचक "आप" की कारक-रचना केवल एकवचन में होती है। "क्या" और "कुछ" का कोई रूपांतर नहीं होता; उनका प्रयोग केवल विभक्ति-रहित कर्त्ता और कर्म में होता है।