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३२०—"आप", "कोई", "क्या" और "कुछ" को छोड़ शेष सर्वनामो के कर्म और संप्रदान कारकों में "को" के सिवा एक और विभक्ति (एकवचन में "ए" और बहुवचन में "एँ") आती है।

३२१—पुरुष-वाचक सर्वनामों में, संबंध-कारक की "का-के-की" विभक्तियों के बदले "रा-रे-री" आती हैं और निजवाचक सर्वनाम में "ना-ने-नी" विभक्तियाँ लगाई जाती हैं।

३२२—सर्वनामो में संबोधन-कारक नहीं होता, क्योंकि जिसे पुकारते या चिताते हैं उसका नाम या उपनाम कहकर ही ऐसा करते हैं। कभी कभी नाम याद न आने पर अथवा क्रोध में "अरे तू", "अरे यह", आदि शब्द बोले जाते हैं, परंतु ये (अशिष्ट) प्रयोग व्याकरण में विचार करने के योग्य नहीं हैं।

३२३—पुरुष-वाचक सर्वनामों की कारक-रचना आगे दी जाती है—

उत्तम पुरुष "मैं"

कारक एक॰ बहु॰
मैं हम
कर्म मुझको, मुझे हमको, हमें
अपादान मुझसे हमसे
संबंध मेरा-रे-री हमारा-रे-री
अधिकरण मुझमें हममें

मध्यम पुरूष "तू"

कारक एक॰ बहु॰
कर्त्ता तू तुम
तूने तुमने