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कर्म तुझको, तुझे तुझको, तुम्हें
करण तुझसे तुमसे
संप्रदान तुझसे तुमसे
अपादान तुझसे तुमसे
संबंध तेरा-रे-री तुम्हारा-रे-री
अधिकरण तुझमें तुममे
(अ) पुरुष-वाचक सर्वनामों की कारक-रचना में बहुत समानता है। कर्त्ता और संबोधन को छोड़ शेष कारकों के एकवचन में "मैं" का विकृत रूप "मुझ" और "तू" का "तुझ" हेाता है। संबंध-कारक के दोनों वचनों में मैं का विकृत रूप क्रमशः "मे" और "हमा" और "तू" का "ते" और "तुम्हा" होता है। दोनों सर्वनामों में संबंध-कारक की रा-रे-री विभक्तियाँ आती हैं। विभक्ति-सहित कर्त्ता के दोनों वचनों में और संबंध-कारक को छोड़ शेष कारकों के बहुवचन में दोनों का रूप अविकृत रहता है।
(आ) पुरुषवाचक सर्वनामों के विभक्ति-रहित कर्ता के एकवचन और संबंध-कारक को छोड़ शेष कारकों मे अवधारण के लिए एकवचन में "ई" और बहुवचन मे ई वा हीं लगाते हैं; जैसे, मुझीको, तुझीसे, हमींने, तुम्हीँसे, इत्यादि।
(इ) कविता मे "मेरा" और "तेरा" के बदले बहुधा संस्कृत की षष्ठी के रूप क्रमशः "मम" और "तव" आते हैं; जैसे, "करहु सु मम उर धाम।" (राम॰)। "कहाँ गई तव गरिमा विशेष?" (हिं॰ प्र॰)।

३२४—निजवाचक "आप" की कारक-रचना केवल एकवचन में होती है; परंतु एकवचन के रूप बहुवचन संज्ञा या सर्वनाम के साथ भी आते हैं। इसका विकृत रूप "अपना" है जो संबंध-कारक