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बना" है; पर कभी कभी इसका अर्थ "वृथा" भी होता है; जैसे, "वह राजा ही काहेका है। (सत्य०)।

(आ) "क्या से क्या" और "क्या का क्या" वाक्यांशों में "क्या" के साथ विभक्ति आती है। इनसे दशांतर सूचित होती है।

३३०—अनिश्चयवाचक सर्वनाम "कोई" यथार्थ में प्रश्नवाचक सर्वनाम से बना है; जैसे, सं॰—कोपि, प्रा॰—कोबि, हिं॰—कोई। इसका विकृत रूप "किसी" है जो प्रश्नवाचक सर्वनाम "कौन" के विकृत रूप "किस" में अवधारणबाधक "ई" प्रत्यय लगाने से बना है। "कोई" की कारक-रचना केवल एकवचन होती है; परंतु इसके रूपों की द्विरुक्ति से बहुवचन का बोध होता है। कर्म और संप्रदान-कारकों में इसका एकारांत रूप नहीं होता, जैसे दूसरे सर्वनामों का होता है।

अनिश्चयवाचक "कोई"

कारक एक॰
कर्त्ता कोई
किसीने
कर्म—संप्रदान किसीको

[सू॰— कोई कोई वैयाकरण इसके बहुवचन रूप "किन" के नमूने पर "किन्हींने" "किन्हींको" आदि लिखते हैं; पर ये रूप शिष्ट-सम्मत नहीं है। "कोई" के द्विरुक्त रूप ही से बहुवचन का बोध होता है। परिवर्तन के अर्थ में "कोई" के अविकृत रूप के साथ संबंध-कारक की विभक्ति आती है, जैसे "कोई का कोई राजा बन गया।" इस वाक्यांश का प्रयोग बहुधा कर्त्ता कारक ही में होता है।]

३३१—अनिश्चयवाचक सर्वनाम "कुछ" की कारक-रचना नहीं होती। "क्या" के समान यह केवल विभक्ति-रहित, कर्त्ता और कर्म के एकवचन में आता है, जैसे, "पानी में कुछ है।" "लड़के ने कुछ