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फेंका है।" "कुछ का कुछ" वाक्यांश मे "कुछ" के साथ संबंध- कारक की विभक्ति आती है। जब "कुछ" का प्रयोग "कोई" के अर्थ मे संज्ञा के समान होता है तब उसकी कारक-रचना संबोधन को छोड़ शेष कारकों के बहुवचन में होती है, जैसे, "उनमें से कुछ-ने इस बात को स्वीकार करने की कृपा दिखाई।" (हिं॰ को॰)। "कुछ ऐसे हैं।" "कुछ की भाषा सहज है।" (सर॰)।

३३२—आप, कोई, क्या और कुछ को छोड़कर शेष सर्वनामों के कर्म और संप्रदान कारकों में दो दो रूप होने से यह लाभ है। कि दो "को" इकट्ट होकर उच्चारण नहीं बिगाड़ते, जैसे, "मैं इसे तुमको दूँगा।" इस वाक्य मे "इसे" के बदले "इसको" कहना अशुद्ध है।

३३३—निजवाचक "आप", "काई", "क्या" और "कुछ" को छोड़ शेष सर्वनामों के बहुवचन-रूप आदर के लिए भी आते हैं, इसलिये बहुत्व का स्पष्ट बोध कराने के लिए इन सर्वनामों के साथ "लोग" वा "लोगों" लगाते हैं; जैसे, ये लोग, उन लोगों को, किन लोगों से, इत्यादि। "कौन" को छोड़ शेष सर्वनामों के साथ "लोग" के बदले कभी कभी "सब" आता है, जैसे, हम सब, आप सबको, इन सबमें से, इत्यादि।

३३४—विकारी सर्वनामों के मेल से बने हुए सर्वनामों के दोनों अवयव विकृत होते हैं, जैसे, जिस किसी को, जिस जिस से, किसी न किसी का नाम, इत्यादि।

३३५—अवधारण वा अविकार के अर्थ में पुरुष वाचक और निश्चयवाचक सर्वनाम के अविकृत रूप के साथ संबध-कारक की विभक्ति आती हैं, जैसे, "तुम के तुम न गये और मुझे भी न जाने दिया।" "जो तीस दिन अधिक हेागे वह वह के वही होंगे।" (शिव॰)।