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स्थान में "ई" होती है; जैसे, छोटी लड़की, छोटी लड़कियां, छोटी लड़की को, इत्यादि।

(अ) राजा शिवप्रसाद ने "इकट्ठा" विशेषण को उर्दू भाषा के आकारांत विशेषणों के अनुकरण पर अविकृत रूप में लिखा है; जैसे, "दौलत इकट्ठा होती रही", (इति॰); पर "विद्यांकुर" में "इकट्ठें" आया है; जैसे, "उनके इकट्ठे झुंड के झुंड चलते हैं।" अन्य लेखक इसे विकृत रूप में ही लिखते हैं; जैसे, "इकट्ठे होने पर उन लोगों का वह क्रोध और भी बढ़ गया।" (रघु॰)।
(आ) "जमा", "उमदा" और "जरा" को छोड़ शेष उर्दू आकारांत विशेषणों का रूपांतर हिंदी आकारांत विशेषणों के समान होता है; जैसे, "दोष निकालने की तो जुदी बात है।" (परी॰)। "इसे शत्रु पर चलाने और फिर अपने पास लौटा लेने के मंत्र जुदे जुदे हैं।" (रघु॰)। "बेचारा लड़का" "बेचारी लड़की" इत्यादि।

[सं॰—काई काई लेखक इन विशेषणों के अविकृत रूप में ही लिखते हैं; जैसे, "ताजा हवा," (शिव॰), परंतु हिंदी की प्रवृत्ति इनके रूपांतर की ओर है। द्विवेदीजी ने "स्वाधीनता" में "कुछ वर्ष पूर्व "नियम जुदा जुदा हैं" लिखकर अब "रघुवश" में "मत्र जुदे जुदे हैं" लिखा है।]

३४०—आकारांत संबंधसूचक (जो अर्थ मे प्रायः विशेषण के समान हैं) आकारांत विशेषणों के समान विकृत होते हैं। (अं॰ २३३—आ); जैसे, सती ऐसी नारी, तालाब का जैसा रूप, सिंह के से गुण, भेज सरीखे राजा, हरिश्चन्द्र ऐसा पति, इत्यादि।

(अ) जब किसी संज्ञा के साथ अनिश्चय के अर्थ में "सा" प्रत्यय आता है तो इसका रूप उसी संज्ञा के लिंग और वचन के अनुसार बदलता है; जैसे, "मुझे जाड़ा सा लगता है", "एक जोत सी उतरी चली आती है", (गुटका॰)।