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"उसने मुँह पर घूँघट सा डाल लिया है।" (तथा)।
"रास्ते में पत्थर से पड़े हैं।"
३४१—अकारांत गुण-वाचक विशेषणो को छोड़ शेष हिंदी गुणवाचक विशेषणो में कोई विकार नहीं होता , जैसे, लाल टोपी, भारी बोझ, ढालू जमीन, इत्यादि।
३४२—संस्कृत गुणवाचक विशेषण, बहुधा कविता में, विशेष्य के लिंग के अनुसार विकृत होते हैं। इनका रुपांतर "अंत" (अंत्यस्वर) के अनुसार होता है—
(अ) व्यंजनांत विशेषणों में स्त्रीलिंग के लिये "ई" लगाते हैं, जैसे,
पापिन् = पापिनी स्त्री
बुद्धिमत्= बुद्धिमती भार्या
गुणवत् = गुणवती कन्या
प्रभावशालिन् = प्रभावशालिनी भाषा
"हिंदी-रघुवंश" में "युद्ध-संबंधिनी थकावट" आया है।
(आ) कई एक अंगवाचक तथा दूसरे अकारांत विशेषणों में
भी बहुधा "ई" आदेश होती है, जैसे,
सुमुख—सुमुखी
चंद्रवदन—वंद्रवदनी
दयामय—दयामयी
सुंदर—सुंदरी
(इ) उकारांत विशेषणों में, विकल्प से, अंत्य स्वर में "व" आगम करके "ई" लगाते हैं, जैसे,
साधु—साध्वी— | साधु वा साध्वी स्त्री |
गुरु—गुर्वी— | गुरु वा गुर्वी छाया |
(ई) अकारांत विशेषणों में बहुधा "आ" आदेश होता है, जैसे,
सुशील—सुशीला | अनाथ—अनाथा |