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चतुर—चतुरा प्रिय—प्रिया
सरल—सरला सच्चरित्र—सच्चरित्रा

३४३—संख्यावाचक विशेषणों में क्रमवाचक, आवृत्तिवाचक और आकारांत परिमाणवाचक विशेषणों का रूपांतर होता है; जैसे, पहली पुस्तक, पहले लड़के, दूसरे दिन तक, सारे देश में, दुने दामों पर।

(अ) अपूर्णांक विशेषणों में केवल "आधा" शब्द विकृत होता है; जैसे, "आधे गॉव में।" "सवा" शब्द का रूपांतर नहीं होता; पर इससे बना हुआ "सवाया" शब्द विकारी है; जैसे, सवा घड़ी में, सवाये दामों पर। 'पौन' शब्द का एक रूप "पौना" है जो विकृत रूप में आता है; जैसे, पौने दामों पर, पौनी कीमत में, इत्यादि।
(आ) संस्कृत क्रमवाचक विशेषणों में पहले तीन शब्दों में "आ" और शेष शब्दों मे (अठारह तक) "ई" लगाकर स्त्रीलिंग बनाते हैं, जैसे, प्रथम, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, दशमी, षोड़सी इत्यादि। अठारह से ऊपर संस्कृत क्रमवाचक स्त्रीलिंग विशेषणों का प्रयोग हिंदी में बहुधा नहीं होता।
(इ) "एक" शब्द का प्रयोग संज्ञा के समान होने पर उसकी कारक-रचना एकवचन ही में होती है, पर जब उसका अर्थ "कुछ लोग" होता है तब उसको रूपांतर बहुवचन में भी होता है; जैसे, "एकों को इस बात की इच्छा नहीं होती" इत्यादि। (अं॰—१८४-आ)।
(ई) "एक दूसरा" का प्रयोग प्रायः सर्वनाम के समान होता है। यह बहुधा लिंग और वचन के कारण नहीं बदलता; परंतु विकृत कारकों के एकवचन में (आकारांत विशेषणों के समान) इसके अंत "आ" के बदले ए हो जाता है; जैसे,