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३५०—क्रिया के उस रूप के कर्मवाच्य कहते हैं जिससे जाना जाता है कि वाक्य का उद्देश्य क्रिया का कर्म है, जैसे कपड़ा सिया जाता है। चिट्ठी भेजी गई। मुझसे यह बोझ न उठाया जायगा। "उसे उतरवा लिया जाय।" (शिव॰)।

३५१—क्रिया के जिस रूप से यह जाना जाता है कि वाक्य का उद्देश्य क्रिया का कर्त्ता या कर्म कोई नहीं है उस रूप को भाववाच्य कहते हैं; जैसे, "यहाँ कैसे बैठा जायगा, "धूप में चला नहीं जाता।" इत्यादि।

३५२—कर्तृवाच्य अकर्मक और सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं में होता है; कर्मवाच्य केवल सकर्मक क्रियाओं में और भाववाच्य केवल अकर्मक क्रियाओं में होता है।

(अ) यदि कर्मवाच्य और भाववाच्य क्रियाओं में कर्त्ता के लिखने की आवश्यकता हो तो उसे करण-कारक में रखते हैं; जैसे,

लड़के से रोटी नही खाई गई। मुझसे चला नहीं जाता। कर्मवाच्य में कर्त्ता कभी कभी "द्वारा" शब्द के साथ आता है; जैसे, "मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी गई।"

(आ) कर्मवाच्य में उद्देश्य कभी अप्रत्यय कर्मकारक मे (जो रूप में अप्रत्यय कर्त्ता-कारक के समान होता है) और कभी सप्रत्यय कर्मकारक में आता है; जैसे, "डोली एक अमराई में उतारी गई।" (ठेठ॰)। "उसे उतरवा लिया जाय।" (शिव॰)

[सू॰—कर्मवाच्य के उद्देश्य के कर्म-कारक में रखने का प्रयाग आधुनिक और एक-देशीय है । "रामचरितमानस" तथा "प्रेमसागर" में यह प्रयोग नहीं है। अधिकांश शिष्ट लेखक भी इससे मुक्त हैं; परंतु "प्रयोगशरणाः वैयाकरणा" के अनुसार इसका विचार करना पड़ता है।

इस प्रयोग के विषय में द्विवेदी जी "सरस्वती" में लिखते हैं कि "तब खान बहादुर और उनके साथी (१) उसको पेश किया गया (२) खत को लाया