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जाता है और उससे कपड़ा बनाया जाता है)। तरावट के लिए तालु पर तेल मलते हैं। इत्यादि।

(२) कभी कभी कर्मवाच्य की समानार्थिनी अकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है, जैसे, घर बनता है (बनाया जाता है)। वह लड़ाई में मरा (मारा गया)। सड़क सिंच रही है (सीची जा रही है)। इत्यादि।

(३) कुछ सकर्मक क्रियार्थक संज्ञाओं के अधिकरण कारक के साथ "आना" क्रिया के विवक्षित काल का उपयोग करते हैं, जैसे, सुनने में आया है (सुना गया है), देखने में आता है (देखा जाता है), इत्यादि।

(४) किसी किसी सकर्मक धातु के साथ "पड़ना" क्रिया का इच्छित काल लगाते हैं; जैसे, "ये सब बातें देख पड़ेगी आगे।" (सर॰)। जान पड़ता है, सुन पड़ता है।

(५) कभी कभी पूर्त्ति (सज्ञा या विशेषण) के साथ "होना" क्रिया के विवक्षित कालों का प्रयोग होता है, जैसे, नानक उस गाँव के पटवारी हुए (बनाये गये)। यह रीति प्रचलित हुई (की गई)।

(६) भूतकालिक कृदंत (विशेषण), के साथ संबंध-कारक और "होना" क्रिया के कालो का प्रयोग किया जाता है; जैसे, यह बात मेरी जानी हुई है (मेरे द्वारा जानी गई है)। वह काम लड़के का किया होगा (लड़के से किया गया होगा)।

३५५—भाववाच्य क्रिया बहुधा अशक्तता के अर्थ में आती है, जैसे, यहॉ कैसे बैठा जायगा। लड़के से चला नहीं जाता।

(अ) अशक्तता के अर्थ में सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं के अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के साथ "बनना" क्रिया के कालो का भी उपयोग करते हैं, जैसे, रोटी खाते नही बनता, लड़के से चलते न बनेगा, इत्यादि। (अ॰-४१६)।