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ष्यत् काल से मर्यादित है तथापि उसकी पूर्व और उत्तर मर्यादा पूर्णतया निश्चित नहीं है। वह केवल वक्ता वा लेखक की तत्कालीन कल्पना पर निर्भर है। वह कभी कभी तो केवल क्षण-व्यापी होता है और कभी कभी युग, मन्वंतर अथवा कल्प तक फैल जाता है। इसलिए भूतकाल के अंत और भविष्यत्-काल के आरंभ के बीच का कोई भी समय वर्तमानकाल कहलाता है।]

(३) सामान्य भूतकाल की क्रिया से जाना जाता है कि व्यापार बेलने वा लिखने के पहले हुआ, जैसे पानी गिरा, गाड़ी आई, चिट्ठी भेजी गई।

(४) अपूर्ण भूतकाल से बोध होता है कि व्यापार गत काल में पूरा नहीं हुआ, किंतु जारी रहा, जैसे, गाडी आती थी, चिट्ठी लिखी जाती थी, नौकर जा रहा था।

(५) पूर्ण भूतकाल से ज्ञात होता है कि व्यापार के पूर्ण हुए बहुत समय बीत चुका; जैसे, नौकर चिट्ठी लाया था, सेना लड़ाई पर भेजी गई थी।

(६) सामान्य भविष्यत्-काल की क्रिया से ज्ञात होता है कि व्यापार का आरंभ होनेवाला है; जैसे, नौकर जायगा, हम कपड़े पहिनेंगे, चिट्ठी भेजी जायगी।

[टी०—कालों का जेा वर्गीकरण हमने यहाँ किया है वह प्रचलित हिंदी- व्याकरणों में किये गए वर्गकिरण से भिन्न है। उनमे काल के साथ साथ क्रिया के दूसरे अर्थ भी (जैसे—आज्ञा, समावना, संदेह आदि) वर्गीकरण के आधार माने गये है। हमने इन दोनों आधारों (काल और अर्थ) पर अलग अलग वर्गीकरण किया है, क्योंकि एक आधार में क्रिया के केवल काल की प्रधानता है और दूसरे में केवल अर्थ वा रीति की। ऐसा वर्गीकरण न्याय-सम्मत भी है। ऊपर लिखे सात कालों का वर्गीकरण क्रिया के समय और व्यापार की पूर्ण अथवा अपूर्ण अवस्था के आधार पर किया गया है। अर्थ के अनुसार कालों का वर्गीकरण अगले प्रकरण में किया जायेगा।

यदि हिंदी में वर्त्तमान और भूतकाल के समान भविष्यत्-काल में भी व्यापार की पूर्णता और अपूर्णता सूचित करने के लिए क्रिया के रूप उपलब्ध होते ते हिंदी की काल-व्यवस्था अँगरेजी के समान पूर्ण हो जाती और कालों