पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३०४)


(१) क्रिया के जिस रूप से किसी विधान का निश्चय सूचित होता है उसे निश्चयार्थ कहते हैं, जैसे, "लड़का आता है," "नौकर चिट्ठी नही लाया," "हम किताब पढ़ते रहेंगे," "क्या आदमी न जायगा?"

[सू॰—(क) हिंदी मे निश्चयार्थ क्रिया का कोई विशेष रूप नहीं है। जब क्रिया किसी विशेष अर्थ में नहीं आती तब उसे, सुभीते के लिए, निश्चयार्ध में मान लेते है। "काल" के विवेचन में पहले (अ॰-३५८ में) जो उदाहरण दिए गये हैं वे सब निश्चयार्थ के उदाहरण हैं।

(ख) प्रश्नवाचक वाक्यों में क्रिया के रूप से प्रश्न सूचित नहीं होता, इसलिए प्रश्न को क्रिया को अलग "अर्थ" नहीं मानते। यद्यपि प्रश्न पूछने में वक्ता के मन में संदेह का अभास रहता है तथापि प्रश्न का उत्तर सदैव संदिग्ध नहीं देता। "क्या लड़का आया है?"—इस प्रश्न का उत्तर निश्चयपूर्वक दिया जा सकता है, जैसे, "लड़का आया है" अथवा "लड़का नहीं आया"। इसके सिवा प्रश्न स्वयं कई अर्थों में किया जा सकता है, जैसे, क्या लड़का आया है" (निश्चय), "लड़की कैसे आवे?" (संभावना), "लड़का आया होगा" (संदेह), इत्यादि।

(२) संभावनार्थ क्रिया से अनुमान, इच्छा, कर्तव्य आदि का बोध होता है; जैसे, कदाचित् पानी बरसे (अनुमान), तुम्हारी जय हो (इच्छा), राजा को उचित है कि प्रजा का पालन करे(कर्त्तव्य), इत्यादि।

(३) संदेहार्थ क्रिया से किसी बात का संदेह जाना जाता है; जैसे, "लड़का आता होगा," "नौकर गया होगा।"

(४) आज्ञार्थ क्रिया से आज्ञा, उपदेश, निषेध, आदि का बोध होता है; जैसे, तुम जाओ, लड़का जावे, वहाॅ मत जाना, क्या मैं जाऊँ (प्रार्थना), इत्यादि।

[सू॰—आज्ञार्थ और संभावनार्थ के रूपों में बहुत कुछ समानता है। यह बात आगे काल-रचना के विवेचन में जान पड़ेगी। संभावनार्थ के कर्त्तव्य, योग्यता आदि अर्थों में कभी कभी आज्ञा का अर्थ गर्भित रहता है जैसे, "लड़का यहाँ बैठे"। इस वाक्य में क्रिया से आज्ञा और कर्त्तव्य दोनो अर्थ सूचित होते हैं।]