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सितारै-हिंद "पुकारना" क्रिया को सदा कर्त्तरिप्रयाग में लिखते हैं, जैसे, "चोबदार पुकारा"। जो तू एक बार भी जी से पुकारा होता।" (गुटका॰)।

[सं॰—संयुक्त क्रियाओं के प्रयोगों का विचार वाक्य-विन्यास में किया जायगा। (अ॰—६२८—६३८)।

३६७—कर्मणिप्रयोग दो प्रकार का होता है—(१) कर्तृवाच्य कर्मणिप्रयोग (२) कर्मवाच्य कर्मणिप्रयोग।

(१) "बोलना"-वर्ग की सकर्मक क्रियाओं के छोड़ शेष कर्तृवाच्य सकर्मक क्रियाएँ भूतकालिक कृदंत से बने कालों में (अप्रत्यय कर्मकारक के साथ) कर्मणिप्रयोग में आती हैं, जैसे, मैंने पुस्तक पढी, मत्री ने पत्र लिखे, इत्यादि। कर्तृवाच्य के कर्मणिप्रयोग मे कर्ता-कारक सप्रत्यय रहता है।

(२) कर्मवाच्य की सब क्रियाएँ (अं॰—३५०, ३९३) अप्रत्यय कर्मकारक के साथ कर्मणिप्रयोग में आती हैं। जैसे, चिट्ठी भेजी गई, लड़का बुलाया जायगा, इत्यादि। यदि कर्मवाच्य के कर्मणिप्रयोग में कर्ता की आवश्यकता हो तो वह करण-कारक में अथवा "द्वारा" शब्द के साथ आता है, जैसे, मुझसे पुस्तक पढ़ी गई। मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी गई।

३६८—भावेप्रयोग तीन प्रकार का होता है—(१) कर्तृवाच्य भावेप्रयोग (२) कर्मवाच्य भावेप्रयोग (३) भाववाच्य भावेप्रयोग।

(१) कर्तृवाच्य भावेप्रयोग में सकर्मक क्रिया के कर्त्ता और कर्म दोनों सप्रत्यय रहते हैं और यदि क्रिया अकर्मक हो तो केवल कर्त्ता सप्रत्यय रहता है, जैसे, रानी ने सहेलियों को बुलाया, हमने नहाया है, लड़की ने छींका था।

(२) कर्मवाच्य भावेप्रयोग में कर्म सप्रत्यय रहता है और यदि कर्त्ता की आवश्यकता हो तो वह "द्वारा" के साथ अथवा करण-