पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३१६)

इत्यादि। इससे मुख्य क्रिया के साथ होनेवाले व्यापार की अपूर्णता सूचित होती है; जैसे, "मुझे घर लौटते रात हो जायगी।" "उसने जहाजों का एक पाती में जाते देखा।" (विचित्र॰)। "तू अपनी विवाहिता को छोड़ते नही लजाता। (शकु॰)।

३८३—पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत अव्यय भूतकालिक कृदंत विशेषण के अंत्य "आ" को "ए" आदेश करने से बनता है; जैसे, किये, गये, बीते, लिये, मारे इत्यादि। इस कृदंत से बहुधा मुख्य क्रिया के साथ होनेवाले व्यापार की पूर्णता का बोध होता है, जैसे, इतनी रात गये तुम क्यों आये? इस बात के हुए कई वर्ष बीत गये। इससे मुख्य क्रिया की रीति भी सूचित होती है, जैसे, "महाराज कमर कसे बैठे हैं।" (विचित्र॰)। "लिये" और "मारे" कृदंतों का प्रयोग बहुधा संबंध-सूचक अव्यय के समान होता है। (अं॰—२३९—४)।

३८४—अपूर्ण क्रियाद्योतक और पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंतों के साथ बहुधा (अं॰—३७७—अ) "होना" क्रिया का पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत अव्यय "हुए" लगाया जाता है; जैसे, "दो एक दिन आते हुए दासी ने उसको देखा था"। (चंद्र॰)। "धर्म एक वैताल के सिर पर पिटारा रखवाये हुए आता है।" (सत्य॰)।

[सू॰—तात्कालिक कृदंत, अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत और पूर्ण क्रियाद्दोतक कृदंत यथार्थ में क्रिया के कोई भिन्न प्रकार के रूपांतर नहीं हैं, किंतु वर्त्तमानकातिक और भूतकालिक कृदंतों के विशेष प्रयेाग हैं। कृदंतों के वर्गीकरण में इन तीनों के अलग अलग स्थान देने का कारण यह है कि इनका प्रयेाग कई एक संयुक्त क्रियाओं में और स्वतंत्र कर्त्ता के साथ तथा कभी कभी क्रिया-विशेषण के समान होता है, इसलिए इनके अलग अलग नाम रखने में सुभीता है। कृदंतों के विशेष अर्थ और प्रयेाग वाक्य-विन्यास में लिखे जायँगे।