पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३१८)

तीसरा वर्ग।

(भूतकालिक कृदंत से बने हुए काल)

(१) सामान्यभूत
(२) आसन्नभूत (पूर्णवर्त्तमान)
(३) पूर्णभूत
(४) संभाव्य-भूत
(५) संदिग्ध-भूत
(६) पूर्णसंकेतार्थ

(ख) इन तीन वर्गो में से पहले वर्ग के चारों काल तथा सामान्य संकेतार्थ और सामान्य भूत केवल प्रत्ययों के योग से बनते हैं, इसलिए ये छः काल साधारण काल कहलाते हैं; और शेष दस काल सहकारी क्रिया के योग से बनने के कारण संयुक्त काल कहे जाते हैं। कोई कोई वैयाकरण केवल पहले छः कालों के यथार्थ "काल" मानते हैं, और पिछले दस कालों को संयुक्त क्रियाओं में गिनते हैं, क्योंकि इनकी रचना दो क्रियाओं के मेल से होती हैं। पहले (अं॰—३४९—टी॰ में) कहा जा चुका है कि हिदी संस्कृत के समान रूपांतरशील और संयोगात्मक भाषा नहीं* है, इसलिए इसमे शब्दों के समासी को भी कभी कभी, सुभीते के लिए, उनका रूपांतर मान लेते हैं। इसके सिवा हिंदी में संयुक्त क्रियाएँ अलग मानने की चाल पुरानी है जिसका कारण यह है कि कुछ सयुक्त क्रियाएँ कुछ विशेष काल में ही आती हैं और कई एक संयुक्त क्रियाएँ संज्ञाओं के मेल से बनती हैं। इस विषय का विशेष विचार आगे (अं॰—४०० मे) किया जायगा। जिन कालों को


  • हिंदुस्थान की और और आर्य्यभाषाओं—मराठी, गुजराती, बँगला,

आदि—की भी यही अवस्था है।