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"संयुक्त काल" कहते हैं, वे कृदतों के साथ केवल एक ही सहकारी क्रिया के मेल से बनते हैं और उनसे संयुक्त क्रियाओं के विशेष अर्थ—अवधारण, शक्ति, आरभ, अवकाश, आदि—सूचित नहीं होते, इसलिए संयुक्त कालों की संयुक्त क्रियाओं से अलग मानते हैं। "संयुक्त काल" शब्द के विषय में किसी-किसी को जो आक्षेप है उसके संबंध में केवल इतना ही कहना है कि "कल्पित" नाम की अपेक्षा कुछ भी सार्थक नाम रखने से उसका उल्लेख करने में अधिक सुभीता है।
१—कर्तृवाच्य।
३८६—पहले वर्ग के चारों कीलों के कर्तृवाच्य के रूप नीचे लिखे अनुसार बनते हैं—
(१) संभाव्य भविष्यत् काल बनाने के लिए धातु में ये प्रत्यय जोड़े जाते हैं—
पुरूष | एकवचन | बहुवचन |
उ॰ पु॰ | ऊँ | एँ |
म॰ पु॰ | ए | ओ |
अ॰ पु॰ | ए | एँ |
(अ) यदि धातु अकारात हो तो ये प्रत्यय "आ" के स्थान में लगाये जाते हैं, जैसे, "लिख" से "लिखूँ", "कह" से कहे, "बोल" से "बोलें", इत्यादि।
(आ) यदि धातु के अंत में आकार वा ओकार हो तो "ऊँ" "ओ" को छोड़ शेष प्रत्ययों के पहले विकल्प से "व" का आगम होता है; जैसे, "जा" से जाए वा जावे, "गा" से गाए वो गावे, "खो" से खाए वा खोवे, इत्यादि। ईकारात और ऊकारात धातुओ मे जब विकल्प से "ब" का आगम नहीं होता तब उनका अत्य स्वर हस्व हो जाता है, जैसे पुरुष