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विधि का मध्यम पुरुष एकवचन धातु ही के समान होता है, जैसे, "कहना" से "कह", "जाना" से "जा", इत्यादि।

सु॰—"शकु॰" में विधि के मध्यम पुरुष एकवचन का रूप संभाव्य भविष्यत् ही के समान आया है, जैसे, कन्व—हे वेटी, भेरे नित्य कर्म में विघ्नमत डाले।

(अ) आदर-सूचक "आप" के लिये मध्यम पुरुष मे धातु के साथ साथ "इये" वा "इयेगा" जेड देते हैं; जैसे, आइये, बैठिये,

पनि खाइयेगा।

(आ) लेना, देना, पीना, करना और होना के आदर-सूचक विधि काल में, "इये" वा "इयेगा" के पहले ज को आगम होता है और उनके स्वरों में प्रायः वही रूपांतर होता है जो इन क्रियाओं के भूतकालिक कृदंत बनाने में किया जाता है (अं॰—३७६), जैसे,
लेना—लीजिये करना—कीजिये देना—दीजिये
होना—हूजिये पीना—पीजिये।
(इ) "करना" का नियमित आदर-सूचक विधिकाल "करिये"

"शकु॰" मे आया है, पर यह प्रयोग अनुकरणीय नहीं है।

(ई) कभी कभी आदर-सूचक विधि का उपयोग संभाव्य भविष्यत्। के अर्थ में होता है, जैसे, "मन में ऐसी आती है कि सब छोड़ छाड़ बैठ रहिये। (शकु॰)। "बायस पालिय अति अनुरागा। (राम॰)
(उ) "चाहिये" यथार्थ में आदर-सूचक विधि का रूप है, पर इससे वर्तमान काल की आवश्यकता का बोध होता है; जैसे, मुझे पुस्तक चाहिये।
(ऊ) आदर-सूचक विधि का दूसरा रूप (गांत) कभी कभी आदर के लिये सामान्य भविष्यत् और परोक्ष विधि में भी

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