(४) परोक्ष विधि केवल मध्यम पुरुष मेँ आती है और दोनों वचनों में एक ही रूप का प्रयोग होता है। इसके दो रूप देते हैं—(१) क्रियार्थक संज्ञा तद्वत् परोक्ष विधि होती है (२) आदरसूचक विधि के अंत में ओ आदेश होता है; जैसे, (१) तू रहना सुख से पति-संग (सर॰)। प्रथम मिलाप को भूल मत जाना। (शकु॰)। (२) तू किसी के सेही मत कहियो। (प्रेम॰)। पिता, इस लता को मेरे ही समान गिनियो। (शकु॰)।
सु॰—किसी किसी का मत है कि "इसे" को "हुए" लिखना चाहिये, अर्थात "चाहिये" "कीजिये", आदि शब्द "चाहिए" "कीजिए", रूप में लिखे जायें। इस मत का प्रचार थोड़े ही वर्षों से हुआ हैं, और कई लोग इसके विरोधी भी है। इस वर्ण-विन्यास के प्रवर्त्तक पं॰ महावीरप्रसादजी द्विवेदी हैं जिनके प्रभाव से इसका महत्त्व बहुत बढ़ गया है। स्थानाभाव के कारग्स हम यहा दोनों पक्षों के बाद का विचार नहीं कर सकते; पर इस मत को ग्रहण करने में विशेष कठिनाई यह है कि यदि "कीजिये" के "कीजिए" लिखें तो हैं। फिर "कीजियो" किस रूप में लिखा जायेगा? यदि "कीजियो" है। "कीजिओ"