तू एक बार भी जी से पुकारा होता तो तेरी पुकार तीर की तरह तारों के पार पहुँची होती"। (गुटका॰)।
३९०—आकारांत क्रिया में पुरुष के कारण भेद नहीं पड़ता; जैसे, मैं गया, तू गया, वह गया। जब उनके साथ सहकारी क्रिया आती है तब स्त्रीलिंग के बहुवचन का रूपांतर केवल सहकारी क्रिया में होता है; जैसे, मैं जाती हैं, हम जाती हैं, वे जाती थी।
३९१—उत्तम पुरुष, स्त्रीलिंग बहुवचन के रूप बहुधा (अं॰—११८—ऊ) बोल-चाल में पुल्लिंग ही के समान होते हैं। राजा शिवप्रसाद का यही मत है और भाषा में इसके प्रयोग मिलते हैं; जैसे गैतमी—हम जाते हैं। (शकु॰)। रानी—अब हम महल में जाते हैं। (कर्पूर॰)।
३९२—आगे कर्तृवाच्य के सब कालों में तीन क्रियाओं के रूप लिखे जाते हैं। इन क्रियाओं में एक अकर्मक, एक सहकारी और एक सकर्मक है। अकर्मक क्रिया हलत धातु की और सकर्मक क्रिया स्वरांत धातु की है। सहकारी "होना" क्रिया के कुछ रूप अनियमित होते हैं—
(अकर्मक) "चलना" क्रिया (कर्तृवाच्य)
धातु... | ... | ... | ... | चल (हलंत) |
कर्तृवाचक संज्ञा | ... | ... | ... | चलनेवाला |
वर्तमानकालिक कृदंत | ... | ... | चलता-हुआ | |
भूतकालिक कृदंत | ... | ... | ... | चला-हुआ |
पूर्वकालिक कृदंत | ... | ... | .. | चल, चलकर |
तात्कालिक कृदंत | ... | ... | ... | चलतेही |
अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत | ... | ... | चलते-हुए | |
पुर्ण क्रियाद्योतक कृदंत | ... | ... | चले-हुए |