पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३४६)
कर्म—स्त्रीलिंग एकवचन बहुवचन
मैंने वा हमने
तूने वा तुमने
उसने वा उन्होंने


पाई होती पाई होतीं

२—कर्मवाच्य

३९३—कर्मवाच्य क्रिया बनाने के लिए सकर्मक धातु के भूतकालिक कृदंत के आगे जाना (सहकारी) क्रिया के सब कालों और अर्थों के रूप जोड़ते हैं। कर्मवाच्य के कर्मणि-प्रयोग में (अं॰–३६७) कर्म उद्देश होकर अप्रत्यय कर्त्ता-कारक के रूप में आता है, और क्रिया के पुरुष, लिंग, वचन उस कर्म के अनुसार होते हैं; जैसे, लड़का बुलाया गया है, लड़की बुलाई गई है।

३९४—(क) जब सकर्मक क्रियाओं का आदर-सूचक रूप संभाव्य भविष्यत्-काल के अर्थ में आता है (अं॰–३८६–३–ई), तब वह कर्मवाच्य होता है और "चाहिये" क्रिया को छोड़कर शेष क्रियाएँ भावेप्रयोग में आती हैं; जैसे, "क्या कहिये", वायस पालिय अति अनुरागा। (राम॰)।

(ख) 'चाहिये' को कोई-कोई लेखक बहुवचन में 'चाहिये' लिखते हैं, जैसे, "वैसे ही स्वभाव के लोग भी चाहिये"। (सत्य॰)। पर यह प्रयोग सार्वत्रिक नहीं है। "चाहिये" से बहुधा सामान्य वर्त्तमानकाल का अर्थ पाया जाता है, इसलिए भूतकाल के लिए इसके साथ "था" जोड़ देते हैं; जैसे, तेरा घोंसला किसी दीवार के ऊपर चाहिये था। इन उदाहरणों में "चाहिये" कर्मणिप्रयोग में है और इसका अर्थ "इष्ट" वा "अपेक्षित" है। यह क्रिया, अन्यान्य क्रियाओं की तरह, विधिकाल तथा दूसरे कालों में नहीं आती।