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(३५०)
एकवचन | बहुवचन |
२ तू ,, ,, ,, | तुम ,, ,, ,, |
३ वह ,, ,, ,, | वे ,, ,, ,, |
(४) संभाव्य भूतकाल
१ मैं देखा गया होऊँ | हम देखे गये हों |
२ तू देखा गया हो | तुम देखे गये हो |
३ वह ,, ,, ,, | वे देखे गये हों |
(५) संदिग्ध भूतकाल
१ मैं देखा गया होऊॅगा | हम देखे गये होंगे |
२ तू देखा गया होगा | तुम देखे गये होगे |
३ वह ,, ,, ,, | वे देखे गये होंगे |
(६) पूर्ण संकेतार्थकाल
१ मैं देखा गया होता | हम देखे गये होते |
२ तू ,, ,, ,, | तुम ,, ,, ,, |
३ वह ,, ,, ,, | वे ,, ,, ,, |
३—भाववाच्य
३९६—भाववाच्य (अं॰—३५१) अकर्मक क्रिया के उस रूप को कहते हैं जे कर्मचाच्य के समान होता है। भाववाच्य क्रिया में कर्म नहीं होता और उसका कर्ता करण-कारक में आता है। भाववाच्य क्रिया सदैव अन्यपुरुष, पुल्लिग, एकवचन मे रहती है; जैसे, हमसे चला न गया, रात-भर किसी से जागा नहीं जाता, इत्यादि।
३९७—भाववाच्य क्रिया सदा भावेप्रयाग में आती है (अ॰—३६८—३) और उसका उपयोग अशक्तता के अर्थ में "न" वा "नहीं" के साथ होता है। भाववाच्य क्रिया सब कालों और कृदंतों में नहीं आती।